नई दिल्ली, 27 अप्रैल। केंद्रीय युवा एवं खेल मामलों के मंत्री अनुराग ठाकुर ने गुरुवार को कहा कि केंद्र सरकार के लिए खेल और खिलाड़ी हमेशा प्राथमिकता रहें हैं। सरकार ने न कभी खिलाड़ियों की सुविधाओं के साथ समझौता किया है और न कभी करेगी।
गौरतलब है कि विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया सहित देश के शीर्ष पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों को धमकाने और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाकर उनकी गिरफ्तारी की मांग करते हुए गत रविवार से जंतर-मंतर पर फिर धरना शुरू किया था, जो लगातार चौथे दिन जारी रहा।
फिलहाल अनुराग ठाकुर ने कहा कि उन्होंने निगरानी समिति के गठन से पहले विरोध कर रहे पहलवानों से बात की थी और उनकी मांग के अनुसार बबीता फोगाट को समिति में जगह भी दी गई थी। ठाकुर ने शिमला में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान सवालों के जवाब देते हुए कहा, ‘सरकार बहुत स्पष्ट है, मोदी सरकार सदा खिलाड़ियों के साथ खड़ी रही है। हम खिलाड़ियों के साथ खड़े थे, खिलाड़ियों को सुविधाएं दीं और उन्हें बढ़ावा देने का काम किया। हमारे लिए खेल और खिलाड़ी प्राथमिकता हैं। उसके लिए हम कहीं पर भी कोई भी समझौता नहीं करते। ना आज तक किया है और ना आगे करेंगे।’
‘पहलवानों के बीच 12 घंटे बैठकर मैंने उनकी बातें सुनी थीं‘
खिलाड़ियों के विरोध पर खेल मंत्री ने कहा, ‘जहां तक आप कुश्ती की बात करते हैं तो कुछ खिलाड़ी अगर आज जंतर-मंतर पर बैठे हैं, उनसे किसने बात की। मैं हिमाचल प्रदेश का अपना पूरा दौरा रद करके 12 घंटे उनके साथ बैठा। सात घंटे एक दिन और साढ़े पांच घंटे अगले दिन। पूरी बातें सुनीं। रात को दो-ढाई बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई। उनसे पूछ कर समिति बनाई गई।’
उन्होंने कहा, ‘शिकायत करने वाले समिति नहीं बनाते, लेकिन सरकार को बनानी थी तो हमने बनाई। उन्होंने एक और व्यक्ति को शामिल करने को कहा। उन्होंने बबीता फोगाट का नाम दिया। हमने उसे भी शामिल किया क्योंकि हमारे मन में कुछ नहीं है। हम निष्पक्ष जांच चाहते थे। निगरानी समिति बनाई गई। निगरानी समिति के सामने जो भी अपनी बात रखना चाहता था, उसे अवसर दिया गया। किसी पर कोई रोक नहीं थी। इनके कारण समय-सीमा भी बढ़ी थी। हमने समय-सीमा बढ़ाने का काम भी किया।’
‘निगरानी समिति की 14 बैठकें हुईं और सुनवाई से किसी को नहीं रोका गया‘
अनुराग ठाकुर ने कहा कि निगरानी समिति की 14 बैठकें हुईं और किसी को भी सुनवाई के लिए आने से कभी नहीं रोका गया। उन्होंने कहा, ‘समिति की 14 बैठकें हुई। जिस खिलाड़ी ने कहा कि मुझे आना है, वह आया। खिलाड़ी ने अगर किसी का नाम लिया और वह आना भी नहीं चाहता था तो हमने उसे भी आने की अनुमति दी। समिति की रिपोर्ट में जो कहा गया, उसके जो मुख्य निष्कर्ष थे कि निष्पक्ष चुनाव हों, तब तक कोई तदर्थ समिति बने, 45 दिन के भीतर चुनाव हों। आंतरिक शिकायत समिति बने, अगर किसी को मानसिक, यौन उत्पीड़न की शिकायत है तो महासंघ में उसके लिए समिति बने तो हमने उसके लिए भी कहा।’
निगरानी समिति ने 45 दिनों के भीतर निष्पक्ष चुनाव का निष्कर्ष दिया था
ठाकुर ने कहा, ‘इसके साथ-साथ अगर कोई और समस्या है, जैसे टीम चयन है, टूर्नामेंट के लिए टीम भेजनी है तो हमने कहा कि भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) समिति बनाएगा और 45 दिनों के भीतर चुनाव कराएगा, निष्पक्ष चुनाव होंगे और नई आम सभा आएगी, उसमें जो आंतरिक शिकायत समिति है वह उसमें काम कर सकती है।’
‘कोई भी व्यक्ति प्राथमिकी दर्ज करा सकता है, लेकिन इसकी प्रक्रिया का पालन होता है‘
खेल मंत्री ने पहलवानों की शिकायत पर पुलिस की ओर से प्राथमिकी दर्ज नहीं करने पर कहा कि कोई भी व्यक्ति प्राथमिकी दर्ज करा सकता है, लेकिन इसकी एक प्रक्रिया होती है, जिसका पालन किया जाता है। उन्होंने कहा, ‘बाहर कोई भी कभी भी किसी भी पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करा सकता है। अगर आठ साल पुराना मामला होगा तो प्राथमिकी आठ साल पहले भी हो सकती थी और आज भी हो सकती है, लेकिन पुलिस भी शुरुआती जांच करती है। दिल्ली पुलिस ने भी कहा कि हम शुरुआती जांच करेंगे और उसमें जो भी निकलता है उसके आधार पर आगे काररवाई करेंगे।’
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा – समलैंगिक जोड़े सामाजिक लाभ कैसे उठा सकते हैं?
नई दिल्ली, 27 अप्रैल। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से पूछा कि समलैंगिक जोड़े सामाजिक लाभ कैसे उठा सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र से कहा कि सरकार को समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खाते खोलने या बीमा पॉलिसियों में भागीदार नामित करने जैसे बुनियादी सामाजिक अधिकार देने का एक तरीका खोजना चाहिए, क्योंकि ऐसा लगता है कि समलैंगिक विवाह को वैध बनाना संसद का विशेषाधिकार है।
समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता और संरक्षण की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं ने देश की शीर्ष अदालत में तर्क दिया कि उन्हें शादी करने के अधिकार से वंचित करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और परिणामस्वरूप भेदभाव और बहिष्कार हुआ है। सरकार समान-लिंग वाले जोड़ों को वैवाहिक स्थिति प्रदान किए बिना उपरोक्त में से कुछ मुद्दों को कैसे संबोधित कर सकती है, इस सवाल को लेकर अदालत ने सॉलिसिटर जनरल को जवाब देने के लिए कहा है।
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूर्ण ने कहा, “हम आपकी बात मानते हैं कि अगर हम इस क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, तो यह विधायिका का क्षेत्र होगा। तो, अब क्या? सरकार ‘सहवास’ संबंधों के साथ क्या करना चाहती है? और सुरक्षा और सामाजिक कल्याण की भावना कैसे बनाई जाती है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसे संबंध बहिष्कृत न हों?”
शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू के उस बयान के एक दिन बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर अदालत नहीं, बल्कि संसद में संसद को बहस करनी चाहिए। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि वह इस मामले को “सरकार बनाम न्यायपालिका” का मुद्दा नहीं बनाना चाहते। गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ पिछले सप्ताह से इस मामले में दलीलें सुन रही है।