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वक्फ बोर्ड : लूट से डकैती तक

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वक्फ शब्द अरबी है, इसका कुरान में कहीं उल्लेख नहीं। भारत में वक्फ बोर्ड ने जिस प्रकार जमीनों पर कब्जा किया, उससे इसे भूमाफिया कहा जाने लगा। वक्फ का इतिहास देखें तो वह भी माफियागीरी से ही शुरू होता है। इसे जानने के लिए पैगम्बर मोहम्मद के काल में जाना होगा। मोहम्मद इस्लाम को फैलाने के प्रयास कर रहे थे, तभी उमर ने खैबर को जीत लिया। इससे जमीन के टुकड़े के साथ ही लूटी हुई कुछ सम्पत्ति, बाग-बगीचे और पानी के कुएं भी हाथ आ गए। तब मोहम्मद ने उमर से कहा, कुछ ऐसा करो कि इसका लाभ गरीब मुसलमानों को मिलता रहे। हदीसों के अनुसार, यहॉं से वक्फ नामक बीज अंकुरित हुआ। बाद में जैसे जैसे लूटपाट बढ़ी, बड़ी सम्पत्तियां भी हाथ आने लगीं। तब इस पर और गहराई से विचार शुरू किया गया। उस समय वक्फ का सम्बंध इस्लाम से नहीं था। लेकिन आज जैसे ही जमीन को लेकर कुछ शासकीय नियम थे, जैसे जमीन पर टैक्स लगना, किसी व्यक्ति का वारिस न होने पर वह जमीन सरकार की हो जाना आदि, इन प्रावधानों से बचने के लिए सम्पत्ति वक्फ की जाने लगी। ऐसा व्यक्ति जो मृत्युशैया पर है, जिसका कोई वारिस नहीं है तो वो अपनी संपत्ति अपने किसी निकट के रिश्तेदार के नाम से वक्फ कर देता था। इससे वह शासन के हाथ में न जाकर किसी मुसलमान रिश्तेदार के पास ही रह जाती थी। कभी कभी उसे मदरसे, अस्पताल आदि का आवरण भी पहना दिया जाता था। उस्मानी साम्राज्य तक यह सब चलता रहा

भारत में जहॉं जहॉं मुसलमान शासक थे, वहॉं सम्पत्तियां वक्फ होती थीं, कुछ लोग दान भी करते थे। लेकिन यह सब अव्यवस्थित था और भारत में मुसलमान भी बुरी तरह विभाजित थे। तब यहॉं पर हर मुस्लिम फिरके का अलग वक़्फ़ था। जैसे, सुन्नी वक्फ, शिया वक़्फ़, अहले हदीस वक्फ, देवबंदी वक्फ, बरेलवी वक्फ, लाहौरी वक्फ, देहलवी वक्फ, जयपुरी वक्फ, शरीफ़ वक्फ, अजबाब वक्फ आदि। इतने सारे वक्फ हुआ करते थे और इनमें आपस में लड़ाइयां होती रहती थीं। अंग्रेज़ जब यहाँ आए और उन्होंने यह देखा तो उनका दिमाग़ घूम गया। 1879 में उनके पास इन लड़ाइयों के निपटान के लिए आवेदन आए, अंग्रेजों ने वे सब हाईकोर्ट को भेज दिए। अंग्रेज़ी जजों ने सारे हाईकोर्ट की रिट पर एक ही निर्णय दिया कि हम इसको प्राइवेट प्रॉपर्टी नहीं मानते और सभी रिटों को रिजेक्ट कर दिया। उस समय सुप्रीम कोर्ट भारत के बजाय लंदन में होता था, जिसे प्रिवी काउंसिल कहा जाता था। हाईकोर्ट से रिजेक्ट होने के बाद ये सारे केस प्रिवी काउंसिल में चले गए। काउंसिल ने भारत में जितने भी आदेश थे, उनको बरकरार रखा और 1894 में आदेश दिया कि वक्फ का अर्थ हमारी दृष्टि में केवल पब्लिक, चैरिटेबल और रिलीजियस होना चाहिए, निजी नहीं। इस आदेश के बाद भारत में बवाल मच गया। तब इस विवाद में पहली बार कांग्रेस पार्टी हिस्सेदार बनी। कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने विचार विमर्श किया और देश में पहली बार जब गवर्नर जनरल की काउंसिल बनी तथा भारत में नियुक्त ब्रिटिश रिप्रजेंटेटिव पहली बार भारत आए तो उनके सामने यह विषय रखा गया। तत्पश्चात् 1913 में एक एक्ट बना, जिसका नाम रखा गया मुसलमान वक्फ वैलीडेटिंग एक्ट। इस तरह वक्फ एक्ट की यह यात्रा वर्ष 1913 में शुरू हुई, जो 1923, 1995 से होती हुई 2014 तक पहुंची, तब तक कांग्रेस ने कानूनी रूप से इसको इतनी शक्तियां दे दीं कि यह भूमाफिया बन गया। शक्तियाँ ऐसी कि मान लीजिए किसी का घर है, जिसमें उसके पुरखे सैकड़ों वर्षों से रहते आए हैं, लेकिन एक दिन वक्फ बोर्ड ने उन्हें नोटिस दिया कि बोर्ड को पता चला है, सौ वर्ष पहले इस घर की ज़मीन पर किसी ने नमाज़ पढ़ी थी, तो आप कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि प्रावधान है कि यदि वक्फ को लगता है कि यह ज़मीन उसकी है तो वो उसे अपने रजिस्टर में दर्ज कर लेगा, आपत्ति दर्ज कराने के लिए 30 दिन का समय मिलेगा, लेकिन आप आपत्ति नहीं दर्ज करा पाएंगे क्योंकि आपको पता ही नहीं चलेगा कि ऐसा कोई नोटिस इशू हुआ है। क्योंकि यह किसी ऐसे समाचार पत्र में छपा होगा, जिसका सर्कुलेशन 200-300 प्रतियां होगा या वह उर्दू के अखबार में छपा होगा, जिसको आप पढ़ते ही नहीं। मान लीजिए आपको पता चल भी गया तो आप ट्रिब्यूनल में जाएंगे, वहॉं वही मुतवल्ली मिलेगा, जिसने आपकी जमीन वक्फ रजिस्टर में चढ़ाई है, बाकी भी मुसलमान ही होंगे। ट्रिब्यूनल का निर्णय आपको मानना होगा क्योंकि इस मामले में ट्रिब्यूनल ही सबसे बड़ी अथॉरिटी है। आप हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकते। भारत में किसी भी बोर्ड को डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के बराबर माना जाता है, लेकिन वक्फ ट्रिब्यूनल को सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर का दर्जा प्राप्त है। परिणाम यह हुआ कि मुसलमानों ने तिरुचिरापल्ली के 15 सौ वर्ष पुराने गाँव, कलकत्ता की विधानसभा, एयरपोर्ट, ताजमहल, रामजन्मभूमि, ज्ञानवापी, मथुरा कृष्ण जन्मभूमि और यहॉं तक कि अम्बानी के घर को भी अपना बताते हुए उस पर दावा ठोक दिया। इस तरह वक्फ एक्ट ज़मीन हड़पने का एक टूल बन गया। ट्रिब्यूनल में मामला निपटान की भी कोई समय सीमा नहीं थी। वह अनंतकाल तक भी चल सकता था। इस दौरान वक्फ बोर्ड पीड़ित से किराए के नाम पर पैसे वसूलता था। जो दे सकता था, वह दे देता था, जो नहीं दे पाता था, उसको कहा जाता था, मुसलमान बन जाओ। कांग्रेस को सत्ता में रहने की ऐसी लत लग चुकी थी कि वोट बैंक पक्का करने के लिए उसने 2014 के लोकसभा चुनाव की तारीख घोषित होने के 48 घंटे पहले दिल्ली की 123 सरकारी सम्पत्तियां वक्फ कर दीं और यह सब क़ानूनन किया। इस मामले में न सुप्रीम कोर्ट कुछ बोला न मीडिया में कोई बहस हुई। इस बात का पता भी तब चला जब मोदी सरकार आयी और उसने संपत्तियां वापस लीं।

नए संशोधन एक्ट में 44 संशोधन किए गए हैं। इसमें सर्वे कमिश्नर (मुतवल्ली) का रोल समाप्त कर दिया गया है। यह एक्ट पास हो जाता है तो वक्फ बोर्ड भले ही किसी जमीन पर दावा करे, लेकिन सर्वे नहीं कर सकेगा। सर्वे का अधिकार अब कलेक्टर के पास होगा। कलेक्टर भी रेवेन्यू बोर्ड के रिकॉर्ड और कानून के आधार पर ही सर्वे कर सकेगा। यदि किसी जमीन पर किसी मुसलमान को यह संदेह है कि यह ज़मीन उसकी हो सकती है तो डीएम पहले अपना रिकॉर्ड चेक करेगा। अब वक्फ के पास लोगों को परेशान करने और हफ्ता वसूली की जो सबसे बड़ी शक्ति थी वो सदा के लिए चली जाएगी। वक्फ बोर्ड के पास अभी पाकिस्तान से अधिक ज़मीन है। गाँव व शहर में नदी किनारे की ज़मीन, चरागाह, मैदान, जंगल सब सरकार के होते हैं। लेकिन कांग्रेस ने दिल्ली में बैठकर उत्तर प्रदेश की सरकारी जमीनों की एक सूची बनाई और वक्फ बोर्ड को दे दी। उस आदेश में लिखा था कि पूरे उत्तर प्रदेश में कहीं कोई बंजर, ऊसर, परदी, नदी, नाले की ज़मीन है तो वह सब वक्फ की है। योगी सरकार आज उन्हीं ज़मीनों को चिन्हित करके, सर्वे कराकर वापस लेने का काम कर रही है। अब सरकार ने एक पोर्टल भी बना दिया है। वक्फ बोर्ड को, जिन्हें वह अपनी कहता है, के पेपर अपलोड करने होंगे। वह ज़मीन वक्फ बोर्ड को कैसे मिली, इसके प्रमाण देने होंगे। नहीं दे पाए तो वो ज़मीन वक्फ की नहीं रह जाएगी। यह दूसरा बड़ा परिवर्तन है। तीसरा अब वक्फ ट्रिब्युनल भी बाक़ी ट्रिब्यूनल जैसा होगा। यदि ट्रिब्यूनल में किसी का मुक़दमा चल रहा है तो ट्रिब्युनल को एक निश्चित समय सीमा में अपना निर्णय सुनाना होगा। संतुष्ट न होने पर पीड़ित हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जा सकेगा। इस संशोधन की एक और विशेषता भी है। इसमें पहली बार मुसलमान शब्द को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि एक मुसलमान ही अपनी संपत्ति वक्फ कर सकता है (पहले कोई भी कर सकता था) और मुसलमान वह जो कम से कम 5 वर्ष से प्रैक्टिसिंग मुसलमान है। यदि कोई आज मुसलमान बन कर सम्पत्ति वक्फ करना चाहे तो नहीं कर सकता, उसे पाँच वर्ष प्रतीक्षा करनी होगी और सम्पत्ति वक्फ करने से पहले अपनी बीवी की सहमति भी लेनी होगी। बीवी को कोई आपत्ति नहीं है, यह सर्टीफिकेट भी देना होगा। बीवी को आपत्ति हुई, तो वह मुसलमान उस सम्पत्ति को वक्फ नहीं कर सकेगा। सम्पत्ति स्वयं द्वारा अर्जित है, इसका प्रमाणपत्र भी देना होगा।

अन्य देशों में वक्फ सम्पत्तियों का रख रखाव