प्रयागराज, 24 सितम्बर। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की आत्महत्या के मामले में हर दिन नए-नए खुलासे हो रहे हैं। अपने सुसाइड नोट में उन्होंने जिस रजिस्टर्ड वसीयतनामा का जिक्र किया था उसके मुताबिक उन्होंने महंत बलवीर गिरि को अपना उत्तराधिकारी बनाया है। इतना ही नहीं महंत नरेंद्र गिरि ने एक नहीं बल्कि तीन बार वसीयत बनवाई थी। हर बार उन्होंने अपना उत्तराधिकारी बदला दिया।
पहला वसीयत 2010 में उन्होंने बनवाया जिसमें बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बनाया। इसके बाद 2011 में उन्होंने दूसरी वसीयत तैयार करवाई, जिसमे अपने शिष्य स्वामी आनंद गिरि को उत्तराधिकारी बनाया। इसके बाद 2020 में एक और वसीयत तैयार करवाई जिसमें पहले की दोनों वसीयतों को रद्द करवाते हुए बलवीर गिरि को फिर से उत्तरधिकारी घोषित किया।
महंत नरेंद्र गिरि के वकील ऋषिशंकर द्विवेदी ने बताया कि महंत नरेंद्र गिरि ने 4 जून 2020 को पहले की दोनों वसीयतों को निरस्त करवाते हुए तीसरी वसीयत लिखवाई जिसमें उन्होंने बलवीर गिरि को अपना उत्तराधिकारी बनवाया। उन्होंने बताया कि नरेंद्र गिरि ने 7 जनवरी 2010 को पहली वसीयत तैयार करवाई थी। इसमें उन्होंने बलवीर गिरि को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। इसके बाद 29 अगस्त 2011 को फिर उन्होंने दूसरी वसीयत तैयार करवाई और इस बार स्वामी आनंद गिरी को उत्तरधिकारी बनाया।
उन्होंने बताया था कि बलवीर गिरि हरिद्वार में व्यस्त रहते हैं इसलिए आनंद गिरि ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। इसके बाद 4 जून 2020 को महंत जी ने अपनी तीसरी वसीयत तैयार करवाई। इस बार उन्होंने अपनी पहले की दोनों वसीयतों को रद्द करवाते हुए एक नई वसीयत तैयार करवाई। इसमें उन्होंने एक बार फिर बलवीर गिरि को उत्तराधिकारी बनाया। उन्होंने स्वामी आनंद गिरि से अपने मनमुटाव का जिक्र भी वकील ऋषिशंकर द्विवेदी से किया था।