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यूपी डीजीपी का आदेश – 5 लाख रुपये तक की साइबर ठगी की शिकायत अब स्थानीय थाने पर

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लखनऊ, 27 जुलाई। साइबर ठगी के बढ़ते मामलों को देखते हुए यूपी डीजीपी ने लोगों की सहूलियत के मद्देनजर नया आदेश जारी किया है। नए आदेश के मुताबिक अब पांच लाख रुपये तक की साइबर ठगी की एफआईआर पीड़ित स्थानीय थाने में दर्ज करा सकेगा।

राज्य के साइबर थानों पर नया नियम लागू 

अब तक स्थानीय थाने में एक लाख रुपये तक की साइबर ठगी की रिपोर्ट ही दर्ज होती थी। एक लाख से बड़ी रकम के लिए लोगों को साइबर थाने जाना पड़ता था। वहीं अब पांच लाख रुपये या इससे अधिक की साइबर ठगी के मामले के रिपोर्ट साइबर थाने में दर्ज करानी होगी। यूपी के सभी 18 रेंज में खुले साइबर थानों पर यह नियम लागू कर दिया गया है।

पब्लिक की मदद करेगी हेल्प डेस्क

पुलिस ने बताया कि साइबर थानों में मुकदमा दर्ज कराने के लिए दूर-दूर से फरियादियों को प्रयागराज आना पड़ता था। अब यह समस्या नहीं होगी। आईजी राकेश सिंह ने बताया कि सभी थानों में साइबर हेल्प डेस्क खोली गई है। उन्हें प्रशिक्षण दिया जा चुका है। साइबर ठगी के शिकार फरियादियों की स्थानीय थाने में एफआईआर दर्ज की जाएगी। संबंधित थाने की पुलिस को साइबर सेल मदद करेगी।

अलीगढ़ में दो साल में रेंज थाने में 42 मुकदमे हुए दर्ज

रेंज साइबर क्राइम थाना अलीगढ़ में दो साल में 42 मुकदमे दर्ज हुए हैं। इनमें एटा के दो, हाथरस के दो, कासगंज का एक और बाकी अलीगढ़ जिले के शामिल हैं। जिन मुकदमों में पांच लाख से अधिक की ठगी हुई, ऐसे दस मुकदमे अभी तक दर्ज हुए हैं। बाकी 32 मुकदमे पांच लाख से कम ठगी वाले हैं। इन सभी की विवेचना जारी है। पुलिस ने इनमें 45 मुल्जिमों को पकड़ा है।

ठगी के पीड़ितों को वापस कराई राशि

रेंज साइबर थाना इंस्पेक्टर सुरेंद्र कुमार ने बताया कि कुल 42 मुकदमों में 2 करोड़, 73 लाख, 63 हजार रुपये की ठगी हुई है। इसमें से 7.57 लाख रुपये वापस कराए गए हैं। 31.88 लाख रुपये की धनराशि बैंक द्वारा होल्ड कराई गई है। वहीं, शिकायतों के आधार पर 1.75 करोड़ से अधिक की ठगी में 25 लाख 37 हजार रुपये की राशि वापस कराई गई है। 19.88 लाख रुपये बैंक होल्ड पर हैं।

संसाधनों की कमी थी साइबर थानों में

यूपी के सभी आईजी कार्यालय में सितंबर 2020 में साइबर थाने खोले गए थे। उस वक्त शर्त थी कि रेंज के चारों जनपदों में होने वाले साइबर अपराध यहीं दर्ज होंगे लेकिन ठगी की राशि एक लाख रुपये से अधिक होनी चाहिए। साइबर अपराध के बढ़ते मामलों को देखते हुए अब इसमें बड़ा बदलाव किया गया है। दरअसल साइबर थानों के पास संसाधनों की कमी है।

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