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दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष नड्डा से मिले यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य, शीर्ष नेतृत्व ने दी नसीहत

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नई दिल्ली, 16 जुलाई। बीते लोकसभा चुनाव के दौरान  समाजवादी पार्टी (सपा) की अगुआई वाले विपक्षी धड़े से मिले झटके के बाद यूपी भाजपा की अंदरूनी तनातनी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। आपसी मतभेदों की एक धुरी डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने एक अलग मोर्चा ही खोल रखा है औकर उसी कड़ी में उन्होंने मंगलवार की शाम राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात की। माना जा रहा है कि लगभघ घंटे भर चली मुलाकात में दोनों नेताओँ के बीच कई मुद्दों पर गहन चर्चा की गई और आगामी विधानसभा उपचुनाव को लेकर भी मंथन किया।

फिलहाल देर रात भाजपा खेमे से जो खबरें छनकर बाहर मीडिया में आईं, उसपर भरोसा करें तो केशव प्रसाद मौर्य खुद दिल्ली नहीं गए बल्कि उन्हें नड्डा ने ही बुलाया था। दरअसल, दो दिन पहले ही जब लखनऊ में भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक हुई थी, उस समय भी नड्डा से यूपी के सभी शीर्ष नेताओँ से चर्चा हुई थी और समझा जाता है कि तभी दिल्ली वाली मुलाकात की पटकथा लिख दी गई थी।

नड्डा ने मौर्य को संयम बरतने की दी सलाह

कयास जरूर लगाए जा रहे थे कि इस मुलाकात के जरिए यूपी में कोई बड़ा सियासी भूचाल आ जाएगा। कोई बड़ा परिवर्तन देखने को मिल जाएगा, शायद सीएम योगी आदित्यनाथ की मुख्यमंत्री कुर्सी खतरे में पड़ जाएगी। लेकिन अभी मीडिया में जो खबर आ रही है, उससे लगता है कि जेपी नड्डा ने केशव प्रसाद मौर्य को ही नसीहत देने का काम किया है और उनसे संयम बरतने को कहा है।

सार्वजनिक मंचों पर ऐसा कोई बयान न दें, जिससे पार्टी की छवि बिगड़े

हालांकि नड्डा-केशव मुलाकात को लेकर कोई औपचारिक बयान या स्टेटमेंट सामने नहीं आया है, लेकिन मीडिया की खबरों के अनुसार  भाजपा अध्यक्ष नहीं चाहते कि केशव प्रसाद मौर्य सार्वजनिक मंचों पर कोई भी ऐसा बयान दें, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान हो। अब यह मायने रखता है क्योंकि प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मौर्य ने कह दिया था कि सरकार से बड़ा संगठन होता है। उनके इसी बयान को सीएम योगी के खिलाफ माना गया और चर्चा शुरू हो गई कि भाजपा के अंदर सबकुछ ठीक नहीं।

कार्यसमिति में केशव के बयान से हाईकमान खुश नहीं

माना यह जा रहा है कि प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के दौरान केशव मौर्य ने जो बयान दिया, उससे हाईकमान खुश नहीं है और उसी वजह से उन्हें दिल्ली तलब किया गया था। दिल्ली मुलाकात के दौरान उन्हें संयम बरतने के लिए कहा गया है।

सीएम योगी व केशव मौर्य के बीच खटपट की खबरें पहले भी बाहर आ चुकी हैं

वैसे यह कोई पहली बार नहीं है, जब केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच खटपट की खबरें चली हों। जब योगी को 2017 में मुख्यमंत्री बनाया गया था, सबसे ज्यादा दर्द केशव प्रसाद मौर्य को ही हुआ था। वह तो मानकर चल रहे थे कि पार्टी एक ओबीसी चेहरे को सीएम पद दे देगी। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ, तभी मतभेद की दीवार दोनों नेताओं के बीच खिंच गई।

मोर्य को बड़ा पद या योगी पर भरोसा?

अब ऐसे समय, जब भाजपा सियासी संकट से जूझ रही है और यूपी में उसे संघर्ष करना पड़ रहा है, जानकार मानते हैं कि केशव मौर्य आपदा में अवसर खोज रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि इस समय उन्हें पार्टी में कोई बड़ा पद मिल सकता है। लेकिन जो जानकारी सामने आ रही है, उसके मुताबिक नड्डा ने मौर्य से 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर मंथन किया है, आगे की रणनीति पर बात हुई है। पद देने को लेकर कोई आश्वासन या वादा नहीं हुआ है। ऐसे में फिलहाल सीएम योगी का मुख्यमंत्री पद से हटाए जाना राजनीतिक जानकारों को मुश्किल लगता है।

योगी को नाराज नहीं कर सकती भाजपा

उल्लेखनीय है कि सीएम योगी आदित्यनाथ सवर्ण जाति से आते हैं, जो भाजपा का कोर वोट बैंक भी है। ऐसे में ओबीसी चेहरे मौर्य के लिए इतने बड़े दूसरे वोट बैंक को पार्टी नजरअंदाज नहीं करना चाहती। उल्टा पार्टी की कोशिश यह है कि हर वर्ग के नेताओं को कुछ न कुछ जिम्मेदारी देकर सभी को साथ रखा जाए। 2014 और 2019 में पार्टी ऐसा करने में सफल रही, उस वजह से ही उसका प्रदर्शन भी अप्रत्याशित दिख गया, लेकिन 2024 के चुनाव में ओबीसी वोट बैंक छिटक गया, दूसरी जातियों में भी सेंधमारी हुई और भाजपा को कई सीटें गंवाकर नुकसान झेलना पड़ा।

संगठन में मौर्य को दी जा सकती है बड़ी जिम्मेदारी

इस सबके बावजूद जेपी नड्डा का सियासी पैगाम बताता है कि कोई बहुत बड़ा बदलाव या परिवर्तन नहीं दिखने वाला है। यह जरूर है कि केशव प्रसाद मौर्य को संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। पहले भी वे इस क्षेत्र में अपनी कुशलता दिखा चुके हैं, जातियों को साधना उन्हें बखूबी आता है।