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शीर्ष अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला का दावा – भाजपा को मिलेगी 350 सीटों पर जीत, 44 सीटों पर सिमट जाएगी कांग्रेस

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नई दिल्ली, 21 अप्रैल। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर पक्ष और विपक्ष के अपने-अपने दावे हैं। भारतीय जनता पार्टी जहां अपने दम पर 350 सीटें जीतने और NDA की कुल सीटें 400 पार जाने का दावा कर रही है वहीं विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. भाजपा के दावे को खारिज करने में लगा है।

इस बीच शीर्ष अर्थशास्त्री और चुनाव विश्लेषक सुरजीत भल्ला ने भाजपा को 350 सीटें मिलने की बात कही है जबकि कांग्रेस के बारे में उनका कहना है कि यह पार्टी 44 सीटों तक सिमट जाएगी। भल्ला ने ये बातें एक इंटरव्यू में कही हैं। उनका यह भी कहना है कि लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में भाजपा को इस बार पांच से सात फीसदी ज्यादा वोट मिलेंगे और इससे होगा ये कि पार्टी को ज्यादा सीटें मिलने जा रही हैं।

सुरजीत भल्ला ने मीडिया से बातचीत में कहा कि सांख्यिकीय संभावनाओं के आधार पर भाजपा को अपने दम पर 330 से 350 सीटें मिलने जा रही। उन्होंने कहा, ‘यह सिर्फ भाजपा है, इसमें उसके गठबंधन सहयोगी शामिल नहीं हैं। यह एक लहर वाला चुनाव हो सकता है। हर चुनाव में लहर बनने की संभावना होती है, लेकिन इस चुनाव में ऐसा नहीं होने जा रहा।’

मौजूदा आम चुनाव में भाजपा के संभावित लाभ के बारे में आशावादी भल्ला ने कहा कि विपक्षी कांग्रेस को 2014 के मुकाबले कम सीटें मिलने की संभावना है। उन्होंने कहा कि देश  की सबसे पुरानी पार्टी को 44 सीटें या 2014 के आम चुनाव की तुलना में दो प्रतिशत कम सीटें मिल सकती हैं।

अर्थशास्त्री भल्ला ने कहा कि I.N.D.I.A. गठबंधन को लेकर दिक्कत है। अर्थशास्त्र और लीडरशिप इस चुनाव में भाजपा के साथ हैं। आम चुनाव 2024 में विपक्ष के पास पीएम फेस नहीं है जबकि दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा विराट चेहरा भाजपा और उसके गठबंधन के पास है।

दक्षिण राज्यों में भाजपा की यह स्थिति रहेगी

सुरजी भल्ला की मानें तो भाजपा को तमिलनाडु में 5 सीट और केरल में एक या दो सीटों पर जीत मिल सकती है। उन्होंने दक्षिण में भाजपा के प्रवेश की संभावना को अर्थव्यवस्था और लोगों की जीवन स्थितियों में सुधार के लिए जिम्मेदार ठहराया।

भल्ला ने उस बात को दोहराया, जिसे 1992 में अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत को लेकर कही थी। उन्होंने कहा था कि भारत में लोग इस आधार पर वोट देते हैं कि उनकी जिंदगी में कितना सुधार हुआ और क्या उनकी जरूरतें पूरी हुईं। जाति, धर्म और कई दूसरे कारण चुनाव में निर्भर नहीं करते।

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