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TMC विधायक मुकुल रॉय दलबदल विरोधी कानून के उल्लंघन में फंसे, कलकत्ता हाई कोर्ट ने रद की विधानसभा की सदस्यता

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कोलकाता, 13 नवम्बर। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने गुरुवार को वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय को दलबदल विरोधी कानून का उल्लंघन किया में पश्चिम बंगाल विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया। दरअसल, हाई कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के पहले के फैसले को पलट दिया, जिन्होंने विपक्ष की कई याचिकाओं के बावजूद मुकुल रॉय के खिलाफ काररवाई करने से इनकार कर दिया था।

भाजपा के टिकट पर जीते, फिर टीएमसी में शामिल हो गए

न्यायमूर्ति देबांग्शु बसाक की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी और भाजपा विधायक अंबिका रॉय की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। उल्लेखनीय है कि मुकुल रॉय ने 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर कृष्णानगर उत्तर सीट से जीत हासिल की थी, लेकिन बाद में वह सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

टीएमसी में शामिल होने के 4 वर्षों बाद हुई काररवाई

उल्लेखनीय यह है कि भाजपा के टिकट पर पहली बार विधायक बनने के बाद तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के चार वर्ष से ज्यादा समय बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद की गई। उच्च न्यायालय ने विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी के उस फैसले को भी खारिज कर दिया, जिसमें रॉय को भाजपा विधायक बताया गया था।

शुभेंदु अधिकारी ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को हाई कोर्ट में दी थी चुनौती

शुभेंदु अधिकारी ने विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी के उस फैसले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें रॉय को दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहराने की उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि भाजपा के टिकट पर निर्वाचित होने के बाद वह सत्तारूढ़ टीएमसी में शामिल हो गए थे।

राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा, ‘मुकुल रॉय टीएमसी की बैठकों में शामिल हुए, उन्हें तृणमूल के रंग में रंगा देखा गया, फिर भी उन्हें भाजपा विधायक कहा गया। यह अभूतपूर्व है। दलबदल विरोधी कानून को मजाक बना दिया गया।’ राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता का दावा है कि बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य में टीएमसी के उदय के बाद से दलबदल विरोधी कानून को बार-बार परीक्षण के दायरे में रखा गया है।

दिलचस्प यह रहा कि चुनावों के एक महीने के भीतर ही मुकुल रॉय, जो रेल मंत्री रह चुके थे और तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा के सदस्य थे, अपनी मूल पार्टी में वापस चले गए। इसके तुरंत बाद उन्हें लोक लेखा समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया, जो कि परम्परागत रूप से विपक्षी खेमे का सदस्य होता है।

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