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भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का WHO ने भी माना लोहा, पीएम मोदी ने कही यह बात

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नई दिल्ली, 26 मार्च। भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का बोलबाला हमेशा से ही दुनिया भर में रहा है, जिसको आज विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी अपनी स्वीकृति दे दी है। डब्ल्यूएचओ और भारत सरकार ने आज पारंपरिक चिकित्सा के लिए डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर स्थापित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। बता दें कि पारंपरिक चिकित्सा के लिए इस वैश्विक ज्ञान केंद्र में भारत सरकार 250 मिलियन अमरीकी डालर का निवेश करने वाली है। इस समझौते को लेकर पीएम मोदी ने भी खुशी जताई है।

भारत सरकार और डब्ल्यूएचओ के बीच इस करार पर पीएम मोदी ने भी ट्वीट कर बधाई दी है। पीएम ने कहा कि डब्ल्यूएचओ ग्लोबल सेंटर फार ट्रेडिशनल मेडिसिन भारत की समृद्ध पारंपरिक प्रथाओं का लाभ उठाने में योगदान देगा, इससे न सिर्फ एक स्वस्थ ग्रह बनेगा बल्कि वैश्विक भलाई के लिए भी यह एक बड़ा कदम साबित होगा। उन्होंने कहा कि विभिन्न पहलों के माध्यम से हमारी सरकार निवारक और उपचारात्मक स्वास्थ्य सेवा को सभी के लिए सस्ती और सुलभ बनाने के अपने प्रयास में अथक रही है और आगे भी यह जारी रहेगा।

ग्लोबल सेंटर फार ट्रेडिशनल मेडिसिन (GCTM) की स्थापना गुजरात के जामनगर में होगी। इसके लिए आयुष मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के बीच एक समझौता हुआ है। बता दें कि दुनिया की लगभग 80% आबादी पारंपरिक चिकित्सा का उपयोग करती है और अब तक 194 डब्ल्यूएचओ सदस्यों में से 170 ने पारंपरिक चिकित्सा के उपयोग की बात मानी है।

गौरतलब है कि आज उपयोग में आने वाले लगभग 40% अनुमोदित फार्मास्युटिकल उत्पाद प्राकृतिक पदार्थों से प्राप्त होते हैं। बता दें कि एस्पिरिन की खोज भी विलो पेड़ की छाल का उपयोग करते हुए पारंपरिक चिकित्सा योगों पर आधारित थी।