लखनऊ, 18 मई। शारीरिक, मानसिक प्रताड़ना और भेदभाव के कारण सामान्य लोगों की तुलना में ट्रांस जेंडरों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति 40 गुना अधिक होती है। अस्पतालों में उनके इलाज को लेकर कोई अलग से व्यवस्था न होने के कारण उन्हें दिक्कत का सामना करना पड़ता है। ये बातें विशेषज्ञों ने शुक्रवार को ट्रांस जेंडरों के स्वास्थ्य को लेकर केजीएमयू में आयोजित हुई कार्यशाला में कही। इस दौरान केजीएमयू की कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद और राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.अमर पाल सिंह भी मौजूद रहे।
कुलपति डॉ.सोनिया नित्यानंद ने कहा कि हर कोई किसी न किसी रूप में भेदभाव झेलता हैं पर हमें उससे ऊपर उठकर खुद की काबिलियत के अनुसार काम करना चाहिए। उन्होंने बताया कि कुछ दिनों पहले सरकार के एक मंत्री से ट्रांसजेंडर के लिए अलग वॉर्ड बनाने की बात कही, हम उसे जरूर बनाएंगे पर सवाल ये भी कि आखिर ट्रांसजेंडर के अलग से वार्ड क्यों? इस पर विचार करने की जरूरत है।
- सिर्फ तीन फीसदी रहते हैं घरवालों के साथ
पहली ट्रांसजेंडर डॉ. अक्सा शेख ने कहा कि एलजीबीटीक्यू समुदाय के स्वास्थ्य मुद्दों को लेकर अनदेखी की जाती है। इनके समाधान पर कोई विचार नहीं किया जाता है। इस समुदाय की समस्या यह है कि इनमें से सिर्फ तीन फीसदी ही परिवार के साथ रहते हैं। अन्य 97 फीसदी बाहर रहते हैं। बीमार होने पर इनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है। डॉ. शेख ने बताया कि एक ट्रांसजेंडर माहवारी व अन्य स्वास्थ्य सम्बंधी किसी समस्या के लिए अस्पताल जाने पर इलाज में तमाम तरह की अड़चने आती हैं। उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
इसके अलावा उन्हें फैमिली और फ्रेंड का सपोर्ट भी कम मिलता हैं। वही उनमें बेहद गंभीर बीमारी एसटीआई, एचआई और मंकी पॉक्स का ज्यादा ज्यादा रहता है। केजीएमयू की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सुजाता देव ने बताया कि क्वीन मेरी में चलने वाले एडोलसेंट क्लीनिक में कई अभिभावक बच्चों के साथ आते हैं। कई अभिभावकों की परेशानी होती है कि उनकी बेटी का व्यवहार लड़के जैसा है। इनकी काउंसलिंग की जाती है। इससे औसतन 80 फीसदी मामलों में स्थिति सामान्य हो जाती है। उन्होंने कहा
सभी को जागरूक रहना इसलिए भी आवश्यक हैं, क्योंकि उन्हें स्पेशल या अलग ट्रीटमेंट नही देना बस सामान्य तरीके से बर्ताव करना हैं, वो भी उसी समाज के अंग हैं, जैसे बाकी लोग।
- बाल दुर्व्यवहार के शिकार हो जाते हैं
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. पवन कुमार गुप्ता ने बताया कि ट्रांसजेंडर को बचपन से तमाम तरह की समस्याएं होती हैं। यह बाल दुर्व्यवहार के शिकार होते हैं। यह स्थितियां उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। इन्हें अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है।
उन्होंने बताया आम तौर पर किसी के लिए परिवार का जो सपोर्ट सिस्टम होता हैं, ट्रांसजेंडर के लिए वही परिवार टॉर्चर सिस्टम की तरह होता हैं। वही कुछ मामलों में उन्हें ‘कॉरेक्टिवे रेप’ जैसे जघन्य अपराध का सामना भी करना पड़ता हैं। यही कारण हैं कि ऐसे लोगों के प्रति सहानुभूति रखना जरूरी हैं। इस मौके पर भारत में कनाडा के डिप्टी हाईकमीशन स्टीवर्ट व्हीलर, केजीएमयू मानसिक रोग विभाग के प्रमुख डॉ. विवेक अग्रवाल, डॉ. एससी तिवारी, डॉ. आदर्श त्रिपाठी ने भी अपने विचार साझा किए।