नई दिल्ली, 15 सितंबर। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाले EWS आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि किसी वर्ग तक सरकारी नीतियों का लाभ पहुंचाने के लिए आर्थिक आधार पर नियम तय करने को प्रतिबंधित नहीं किया गया है। दरअसल अदालत में आरक्षण को चुनौती देने वालों के वकील का कहना था कि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का कोई प्रावधान नहीं है। यह सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए व्यवस्था थी।
इसका मकसद गरीबी हटाओ योजना चलाना नहीं है। इस पर अदालत ने यह अहम टिप्पणी की है। ऐसे में अदालत के रुख से यह माना जा रहा है कि शायद ईडब्लयूएस कोटा बरकरार रहेगा। कई वकीलों ने चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष दलील दी कि किसी परिवार की वित्तीय स्थिति के एकमात्र मानदंड के आधार पर ईडब्ल्यूएस कोटा तय करना असंवैधानिक है। संविधान के तहत इस तरह के आरक्षण को गरीबी उन्मूलन योजना के हिस्से के तौर पर मंजूर नहीं किया जाता है।
वकीलों ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा ‘पूरी तरह से अनुचित, मनमाना, अवैध और असंवैधानिक’ है और इंदिरा साहनी या मंडल कमीशन मामले में न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए सरकार के ‘विधायी निर्णय’ की श्रेणी में आता है। इस केस की सुनवाई करने वाले जजों में चीफ जस्टिस के अलावा न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं।
- ‘आर्थिक आधार पर नीति बनाने में कोई गलत बात नहीं’
सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने कहा, ‘सरकार आर्थिक मानदंडों के आधार पर नीतियां बनाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसी नीतियों का लाभ लोगों तक पहुंचे। आर्थिक मानदंड एक सही आधार है और वर्गीकरण के लिए एक सही तरीका है। यह (ऐसा करना) प्रतिबंधित नहीं है।’ शुरुआत में, एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील रवि वर्मा कुमार ने आरक्षण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का हवाला दिया और चंपकम दोरईराजन के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया, जिसके कारण संविधान में पहला संशोधन हुआ था।