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सुप्रीम कोर्ट का फैसला : तलाकशुदा मुस्लिम महिला शादी में पति को दिए गए तोहफे वापस पाने की हकदार

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नई दिल्ली, 3 दिसम्बर। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) एक्ट, 1986 के तहत शादी के समय अपने पिता के द्वारा पति को दिए गए कैश, सोने के गहने और दूसरी चीजें वापस पाने की हकदार है।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि 1986 के एक्ट का मकसद तलाक के बाद मुस्लिम महिला की इज्जत और पैसे की सुरक्षा करना है, जो संविधान के आर्टिकल 21 के तहत महिला के अधिकारों से मेल खाता है।

बेंच ने मंगलवार (दो दिसम्बर) को दिए गए फैसले में कहा, ‘इसलिए, इस एक्ट को बनाते समय बराबरी, इज्जत और आजादी को सबसे ऊपर रखना होगा और इसे महिलाओं के अपने अनुभवों को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए, खासकर छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में, अंदर से पितृसत्तात्मक भेदभाव आज भी आम बात है।’

पीठ ने कहा कि 1986 अधिनियम की धारा 3(1) विवाह के समय एक महिला को दी गई मेहर/दहेज और/या अन्य संपत्तियों से संबंधित है, जो महिला को अपने पति के खिलाफ दावा करने या अपने पति से दी गई संपत्ति वापस लेने का रास्ता साफ करती है।

कोर्ट को अपनी सोच सोशल जस्टिस के आधार पर रखनी चाहिए

बेंच ने कहा, ‘भारत का संविधान सभी के लिए एक उम्मीद, यानी बराबरी तय करता है, जो जाहिर है, अब तक हासिल नहीं हुई है। इस मकसद के लिए अपना काम करते समय कोर्ट को अपनी सोच सोशल जस्टिस के आधार पर रखनी चाहिए।’ अधिनियम की धारा 3 के शेष प्रावधान अधिक प्रासंगिक नहीं हो सकते हैं, जो प्रकृति में प्रक्रियात्मक हैं।

मुस्लिम महिला की याचिका स्वीकार, पूर्व पति को 17.67 लाख रुपये लौटाने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने इसी क्रम में एक मुस्लिम महिला की याचिका स्वीकार कर ली और उसके पूर्व पति को उसके बैंक खाते में 17,67,980 रुपये भेजने का निर्देश दिया। यह राशि मेहर, दहेज, 30 भोरी (तोला) सोने के आभूषण और अन्य उपहारों के रूप में गणना की गई है, जिसमें घरेलू सामान जैसे रेफ्रिजरेटर, टेलीविजन, स्टेबलाइजर, शोकेस, बॉक्स बेड और डाइनिंग फर्नीचर शामिल हैं।

सर्वोच्च अदालत ने कलकत्ता हाई कोर्ट का 2022 का फैसला भी रद किया

सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि पेमेंट छह सप्ताह के अंदर किया जाए, साथ ही अनुपालन का एफिडेविट भी दिया जाए। बेंच ने स्पष्ट किया कि यदि समय पर पेमेंट नहीं किया गया तो पति को नौ प्रतिशत सालाना ब्याज देना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के 2022 के फैसले को रद कर दिया।

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