नई दिल्ली, 24 अगस्त। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहारों के विषय में पैदा हुए विवाद की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से पूछा है कि वह इस मुद्दे के सार्थक हल के लिए सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुला रहा है। शीर्ष अदालत ने बुधवार को इस विषय से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र से प्रश्न किया, ‘चूंकि यह मामला सभी राजनैतिक दलों का है, इसलिए आपने इस मुद्दे पर विचार करने के लिए अब तक सर्वदलीय बैठक क्यों नहीं बुलाई?’
सभी राजनीतिक दलों के बीच सहमति के बिना नहीं सुलझेगा यह मुद्दा
चीफ जस्टिस एनवी रमना की बेंच ने कोर्ट में मौजूद केंद्र सरकार के प्रतिनिधि से कहा कि मुफ्त उपहार से होने वाले आर्थिक नुकसान के मुद्दे को तब तक नहीं सुलझाया जा सकता, जब तक कि इस विषय में सभी राजनीतिक दलों के बीच सर्वसम्मति का भाव न हो।
सीजेआई रमना बोले – हम कोई आदेश पारित भी कर दें तो कौन उसकी परवाह करेगा?
सीजेआई रमना ने कहा, ‘यहां पर व्यक्ति नहीं बल्कि राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं, जो और मतदाताओं से मुफ्त योजनाओं का वादा करते हैं। हमारे लोकतांत्रिक प्रणाली में व्यक्तियों का अधिक महत्व नहीं हो सकता है, यह तो सभी राजनीतिक दलों के बीच का समान मुद्दा है। इसलिए जब तक सभी राजनीतिक दलों के बीच मुफ्त उपहारों की घोषणा को रोकने के लिए सर्वमान्य दृष्टिकोण पैदा नहीं होता, तब तक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाली मुफ्त योजनाओं को हम नियंत्रण में नहीं कर सकते। मान लीजिए कि अगर हम कल को कोई आदेश पारित भी कर दें तो कौन उसकी परवाह करेगा? आखिर हम भारत सरकार से पूछते हैं कि वह क्यों नहीं सभी राजनीतिक दलों से बात करके इस मुद्दे को अपनी सीमा में हल करने का प्रयास कर रही है।’
मीडया रिपोर्ट के अनुसार चीफ जस्टिस की बेंच ने उस व्यक्ति के संबंध में भी अपनी चिंता व्यक्त की, जो इन मुद्दों के समाधान के लिए सुझाव देने के लिए गठित की जाने वाली समिति का नेतृत्व करेगा। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने सुझाव दिया था कि इस मुद्दे पर बनने वाली समिति का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज करें। सीजेआई रमना ने उदासीन होते हुए कहा, ‘जो व्यक्ति सेवा से रिटायर हो जाता है, उसका भारत में कोई मूल्य नहीं रहता है।’
प्रशांत भूषण की दलील – चुनाव पूर्व मुफ्त उपहारों की घोषणा लोकतंत्र में गंभीर समस्या
इस मामले में कोर्ट के सामने पेश हुए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव से ठीक पहले राजनीति दलों द्वारा मुफ्त उपहारों की घोषणा करना वाकई भारतीय लोकतंत्र में बहुत गंभीर समस्या है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल चुनाव से ठीक छह महीने पहले जिस तरह से मतदाताओं को मुफ्त उपहार देने की बात करते हैं, ऐसा लगता है कि वो मतदाताओं को रिश्वत देने का प्रयास कर रहे हैं।
राजनीतिक दलों के बीच व्यापक बहस की आवश्यकता – कपिल सिब्बल
वहीं प्रशात भूषण की दलील से अलग तर्क पेश करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इस विषय में क्या किया जाना है, इस पर निर्णय लेने से पहले राजनीतिक दलों के बीच व्यापक बहस की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, ‘हम एक ऐसे दलदल में प्रवेश कर रहे हैं, जिसमें हम खुद को नहीं संभाल पाएंगे। हमें उस दलदल से बाहर निकलना होगा और एक ऐसी व्यवस्था करनी होगी, जिसे हम वहन कर सकें।’
केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे तुषार मेहता ने कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहारों की घोषणा के कारण एक ऐसा माहौल तैयार हुआ, जिसमें माना जाता है कि मतदाता ऐसी घोषणाओं को पसंद करते हैं और उनसे प्रभावित भी होते हैं। इसके साथ ही तुषार मेहता ने बेंच को उन स्वायत्त संस्थानों की सूची पेश की, जिनसे कोर्ट इस संबंध में सुझाव मांग सकता है।
इसपर चीफ जस्टिस ने कहा, ‘मौजूदा सियासी हालात में ऐसी भी पार्टियां हैं, जो न राज्य में हैं और न ही केंद्र में, लेकिन उसके बावजूद वो मुफ्त उपहार देने की बात कह रही हैं। राजनीतिक दल मुफ्त उपहार के जरिये मतदाताओं को फुसला रहे हैं कि वो उन्हें वोट करें। मतदाता को यह नहीं पता होता कि चुनाव के बाद उन योजनाओं से किस तरह का आर्थिक नुकसान होगा, लेकिन इसमें कसूर तो राजनीतिक दलों का है, जो चुनाव के बाद मतदाताओं को चांद दिलाने का भी वादा कर सकते हैं।’