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उत्तर प्रदेश : मंत्रिमंडल विस्तार में संभावित मंत्रियों के नाम अभी तय नहीं, कसरत जारी

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लखनऊ, 29 अगस्त। एक अनार सौ बीमार। यह कहावत उप्र सरकार के भावी मंत्रिमंडल विस्तार पर लागू हो रही है। भाजपाइयों के बीच 14 से अधिक नाम भावी मंत्री के रूप में चर्चा का विषय बने हैं, यह नाम पार्टी का जातीय संतुलन साधने वाले हैं, किंतु इन्हें मंत्रिमंडल की खाली छह सीटों पर एडजस्ट करना चुनौती बना है। इसीलिए अभी तक अंतिम सूची तय नहीं हो पाई है।

प्रदेश सरकार के सामने फिलहाल दो बड़ी चुनौतियां हैं। एक तो अपने परंपरागत ब्राह्मण वोट बैंक की नाराजगी को दूर करना। दूसरा पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन और रालोद-सपा के गठजोड़ से होने वाले नुकसान की भरपाई है। इसलिए मंत्रिमंडल विस्तार में यह तय है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश और ब्राह्मण का कोटा बढ़ना तय है। इस सूरत में ब्राह्मण चेहरे के रूप में पार्टी में एंट्री मारने वाले जितिन प्रसाद को एमएलसी और मंत्री दोनों रुतबा मिलना तय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात के बाद यह तस्वीर ताे लगभग साफ हो गई है।

उधर, सहयोगी दलों को मंत्री पद दिया जाएगा तो निषाद पार्टी के संजय निषाद पहले दावेदार हैं। उनका दावा बेहद मजबूत है। अब बाकी बचे नामों में पार्टी को पिछड़ा वर्ग के जाट और गूर्जर वर्ग को प्रतिनिधित्व देना है, पटेल समाज और अनुसूचित जाति को भी शामिल करने की चुनौती है।

ये हैं चर्चित दावेदारों के नाम

भाजपा से ब्राह्मणों में जितिन प्रसाद, गूर्जर समाज से सोमेंद्र गूर्जर, तेजपाल नागर, पटेल समाज से एमपी सेंथवार, छत्रपाल गंगवार, निषाद समाज से संगीता बलवंत बिंद, गोंड समाज से संजय गोंड, जाट समाज से मंजू सिवाच, सहेंद्र रमाला, अनुसूचित जाति से राहुल कौल, पलटू राम, कृष्णा पासी। इसी तरह सहयोगी दल अपना दल एस के अध्यक्ष आशीष पटेल और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद।

मंत्रिमंडल में सिर्फ छह पद खाली

योगी मंत्रिमंडल इस समय 23 कैबिनेट मंत्री, नौ स्वतंत्र प्रभार मंत्री और 22 राज्यमंत्री हैं। यानी कुल 54 मंत्री हैं। कुल विधायकों के 15 फीसदी यानी 60 ही मंत्री बनाए जा सकते हैं। इसलिए छह सीटें ही खाली हैं।

यह फार्मूला भी होगा इस्तेमाल

पार्टी में सर्वमान्य ब्राह्मण चेहरा लक्ष्मीकांत वाजपेयी समेत अनेक वरिष्ठ नेताओं को समायोजित करने के लिए सरकार कुछ कदम उठा सकती है। इसमें सरकार के बोर्ड व निगमों में नियुक्तियां की जाएंगी। साथ ही केंद्र सरकार भी कुछ वरिष्ठ जनों को समायोजित कर सकती है। इसके अलावा कुछ जातीय समीकरण विधान परिषद सदस्यों के चुनाव में भी साधे जाएंगे।

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