लखनऊ, 15 नवंबर। बिहार विधानसभा चुनावों में इस बार महागठबंधन के हद से ज्यादा कमजोर प्रदर्शन ने तमाम चुनावी विश्लेषकों को हैरान कर दिया है। बता दें कि 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में महागठबंधन सत्ता में आने से मामूली अंतर से चूक गया था, जबकि तेजस्वी की अगुवाई में RJD सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।
लेकिन 2025 के चुनावों ने सब कुछ पूरी तरह बदल गया। 14 नवंबर को आए नतीजों में RJD के साथ-साथ महागठबंधन भी धराशायी हो गया। NDA ने 243 में से 202 सीटें हासिल कर प्रचंड जीत दर्ज की, जबकि महागठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया। आखिर ऐसा क्यों हुआ। आइए, समझते हैं।
- बुरी तरह गिरा महागठबंधन के दलों का स्ट्राइक रेट
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन के घटक दलों का स्ट्राइक रेट बुरी तरह गिरा, हालांकि वोट पर्सेंट में कुछ ज्यादा गिरावट नहीं हुई। दोनों ही चुनावों में महागठबंधन का वोट प्रतिशत 37 से थोड़ा ज्यादा रहा लेकिन सामने NDA का वोट प्रतिशत जबरदस्त तरीके से बढ़ गया।
यही वजह है कि महागठबंधन 2020 के 110 सीटें के मुकाबले 2025 में घटकर महज 35 पर आ गया। आरजेडी को 25 सीटें मिलीं जो कि 2020 में मिली 75 सीटों का एक तिहाई है। वहीं, कांग्रेस भी 19 से घटकर 6 पर आ गई और वाम दलों का प्रदर्शन भी निराशाजनक रहा। स्ट्राइक रेट की बात करें तो उसमें भी महागठबंधन के घटक दलों की हालत पतली ही रही। कुल मिलाकर, महागठबंधन के लिए 2020 का विधानसभा चुनाव बेहद निराशाजनक साबित हुआ।
- महागठबंधन के प्रदर्शन में क्यों आई ये गिरावट?
महागठबंधन के प्रदर्शन में गिरावट के कई कारण रहे। एनडीए ने ज्यादा संगठित तरीके से चुनाव लड़ा और ज्यादा वोट बटोर ले गए। पिछले चुनावों के मुकाबले NDA का वोट शेयर करीब 10 फीसदी बढ़ा, जो कि एक बहुत बड़ा अंतर होता है।
वहीं, इसके साथ ही नीतीश की महिला कल्याण योजनाओं ने महिलाओं को लामबंद किया। AIMIM के अच्छे प्रदर्शन ने कई सीटों पर महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया और मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ। इसके अलावा महागठबंधन के घटक दलों द्वारा ‘वोट चोरी’ जैसे आरोप आम जनता के बीच पकड़ नहीं बना पाए। इस तरह के आरोपों ने दलों के कट्टर समर्थकों को एकजुट किया लेकिन फ्लोटिंग वोटर्स ने इनमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।

