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तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि बोले – साहित्य और साहित्यकारों को करनी है भारत के भाव की पुन: प्रतिष्ठा

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चेन्नई, 13 नवम्बर। ‘भारत सिर्फ एक राजनीतिक संघ नहीं है वरन भारत एक भाव है, जिसका निर्माण हजारों-हजार वर्षों में यहां के तपस्वी ऋषियों ने किया है। इस निर्माण का आधार हमारा साहित्य ही रहा है। ज्ञानी ऋषिकुल के साहित्य ने ही भारत का सृजन, संवर्धन और पोषण किया है। वर्तमान काल में, खासतौर से आजादी के बाद भारत का भाव धीरे-धीरे कम होता गया और उसका स्थान इंडिया ने ले लिया। वास्तविकता यह है कि हमें भारत के भाव को ही पुन:प्रतिष्ठित करना है। यह कार्य साहित्य और साहित्यकारों के माध्यम से ही संभव है।’

चेन्नई में भारत : साहित्य एवं मीडिया महोत्सवका किया उद्घाटन

ये उद्गार तमिलनाडु के राज्यपाल महामहिम आरएन. रवि ने व्यक्त किए, जो यहां उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ, साहित्य अकादमी दिल्ली एवं काशी-वाराणसी विरासत फाउंडेशन वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘भारत : साहित्य एवं मीडिया महोत्सव’ के उद्घाटन सत्र को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।

‘मैं नहीं मानता कि इंडिया, भारत का समानार्थी शब्द है

चेन्नई में महात्मा गांधी द्वारा 1918 में स्थापित दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार (DBHP) सभा के ऐतिहासिक सभागार में अपने संबोधन में राज्यपाल आरएन रवि ने कहा, ‘मुझे प्रसन्नता है कि इस तीन दिवसीय आयोजन के केंद्र में भारत है। आजादी के बाद भारत का भाव धीरे-धीरे कम होता गया और उसकी जगह इंडिया ने ले ली। मैं नहीं मानता कि  इंडिया, भारत का समानार्थी शब्द है।’

अपने साहित्य में भारत का भाव दिखाना आज की आवश्वयकता

राज्यपाल रवि ने कहा, ‘महाकवि भारतियार सुब्रमण्यम भारती ने अपनी एक कविता में लिखा कि भारत माता 18 भाषाएं बोलती हैं, लेकिन उनके दिल की धड़कन एक है। उनकी धड़कन साहित्य है। यह दुखद पक्ष है कि हमारा साहित्य जो कभी वसुधैव कुटुंबकम के भाव से परिपूर्ण होकर सृजित होता था, आजादी के बाद बहुत तेजी से स्थानीय होता गया। आज की आवश्यकता यह है कि हम अपने साहित्य में भारत का भाव कितना दिखाते हैं।’

भारत सिर्फ एक राजनीतिक राज्य मात्र नहीं

उन्होंने कहा, ‘भारत सिर्फ एक राजनीतिक राज्य मात्र नहीं है। किसी राजनीतिक राज्य के लिए भूगोल, जनसंख्या, शासन और शासन का सार्वभौमिक संचालन ही अनिवार्य है, लेकिन भारत इससे कहीं ऊपर है। एक समय था, जब भारत में अनेकानेक राजा-महाराजा हुआ करते थे। सबके अपने-अपने अधिकार क्षेत्र थे, किंतु उस समय भी कुछ संस्थान ऐसे थे, जो राजाओं के आधिपत्य में नहीं थे। उदाहरण के तौर पर हम काशी को लें। काशी किसी एक की नहीं है। सबकी है। हम रामेश्वरम को लें। रामेश्वरम किसी एक का नहीं है। यह संपूर्ण भारत के लोगों का है।’

‘भारत एक राष्ट्र है, हमें अपने साहित्य में राष्ट्र का बोध भरना है

राज्यपाल ने कहा, ‘मूलत: भारत एक राष्ट्र है। हमें अपने साहित्य में राष्ट्र का बोध भरना है। मैं कुछ उदाहरण और देना चाहता हूं। आदि शंकराचार्य दक्षिण भारत में हुए। उन्होंने ब्रह्म सूत्र का सृजन किया, किंतु उसकी भाषा इतनी क्लिष्ट थी कि वह सामान्य लोग तो दूर बड़े-बड़े विद्वानों की समझ में भी नहीं आ रहा था। तब मिथिला के वाचस्पति ने उसपर टीका लिखी और वह जनजन की समझ में आया। इसी प्रकार वाल्मीकि ने संस्कृत में रामायण लिखी। उनके बाद सबसे पहले दक्षिण भारत के कंमन ने उसका तमिल में अनुवाद किया। उनके भी कई सौ वर्षों के बाद महान संत गोस्वामी तुलसी दास ने श्रीरामचरितमानस लिखी। तब जाकर राम का विराट स्वरूप जनजन में स्थापित हुआ। हमें आज भी ऐसे ही साहित्य सृजन की आवश्यकता है।’

आज सभी भाषाओं के बीच आपसी संवाद की जरूरत

आरएन रवि ने कहा, ‘समझने वाली बात यह है कि गोस्वामी तुलसीदास, रामानंद के शिष्य थे और रामानंद, रामाजुजम के शिष्य थे, जो दक्षिण भारत के थे। कृष्ण भक्ति की बात होती है तो मीराबाई की चर्चा होती है, लेकिन मीराबाई से पहले दक्षिण भारत में अंडाल नाम की उनकी महान भक्त हुई थीं। उनकी रचनाओं में कृष्णभक्ति का रस कूटकूट कर भरा हुआ है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि आज सभी भाषाओं के बीच आपसी संवाद की जरूरत है ताकि हम भारत के भाव को भली भांति समझ सकें।’

सोशल मीडिया के अधिकतम सदुपयोग को लेकर सोचने की जरूरत

राज्यपाल रवि ने कहा, ‘यह भारत के लिए एक कठिन समय है। एक नए भारत का उदय हो रहा है। ऐसे समय में साहित्यकारों की भूमिका पुन: महत्वपूर्ण हो जाती है। रही बात मीडिया की तो मुझसे पूर्व के वक्ता सोशल मीडिया की आलोचना कर रहे थे। मुझे लगता है इसकी आलोचना करने की जरूरत नहीं है। सोशल मीडिया एक दोधारी तलवार है। इसका अधिक से अधिक सदुपयोग कैसे हो, इसपर सोचने की जरूरत है। आज हिन्दी ही नहीं अपितु सभी भारतीय भाषाओं के प्रचार और आपसी संवाद की अत्यंत आवश्यकता है।’

‘अंग्रेजी मानसिकता से मुक्त होकर ही हम सच्चे अर्थों में आजाद हो पाएंगे

उन्होंने कहा, ‘भारतीय भाषाओं के बीच परस्पर संवाद से ही भारत का भाव पुन: प्रतिष्ठित होगा। अंत में मैं कहना चाहूंगा कि 1947 में जब भारत अंग्रेजों से आजादी का जश्न मना रहा था, तब महात्मा गांधी चिंता में डूबे थे। उनकी चिंता यह थी कि अंग्रेज भौतिक रूप से तो भारत से जा रहे हैं, लेकिन उनका प्रभाव भारतीयों के मस्तिष्क में यथावत है। हमें अंग्रेजी मानसिकता से मुक्त होना होगा, तभी हम सच्चे अर्थों में आजाद हो पाएंगे।’

तीन पुस्तकों का विमोचन

राज्यपाल आरएन. रवि ने उद्घाटन सत्र में तीन पुस्तकों का विमोचन भी किया। पहली पुस्तक पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के असोसिएट प्रोफेसर डॉ. किंशुक पाठक की कृति ‘मीडिया के नए आयाम’, दूसरी पुस्तक दक्षिण भारत की हिन्दी लेखिका 80 वर्षीय राजलक्ष्मी कृष्णनन की कृति ‘उत्कृष्ट तमिल साहित्य और संस्कृति’ तथा तीसरी पुस्तक नोएडा के कमलेश भट्ट ‘कमल’ की कृति ‘चयनित कहानियां’ रही।

काशी में सुब्रमण्यम भारती का स्मारक बनाने का संकल्प

दक्षिण-उत्तर के साहित्य सेतु महाकवि भारतियार सुब्रमण्यम भारती और दक्षिण भारत के महान साहित्यकार-संपादक ‘चंदामामा’ बालशौरि रेड्डी की स्मृति में आयोजित ‘भारत : साहित्य एवं मीडिया महोत्सव’ के उद्घाटन सत्र में काशी-वाराणसी विरासत फाउंडेशन के अध्यक्ष राज्यसभा के पूर्व सांसद आरके. सिन्हा ने कहा कि महाकवि सुब्रमण्य भारती का कार्यक्षेत्र काशी रही। काशी में उन्होंने छह वर्ष तक साहित्य साधना की। इस आयोजन के सूत्रधार डॉ. राममोहन पाठक ने काशी में सुब्रमण्यम भारती स्मारक बनाने का जो प्रस्ताव इस सभा में दिया है, मैं उसे पूर्ण कराने के लिए हरसंभव प्रयास करुंगा। मैं इस संबंध में संस्कृति मंत्रालय से बात करूंगा। आवश्यकता पड़ी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात करूंगा। इस सभा में उपस्थित लोगों को मैं विश्वास दिलाता हूं कि काशी में सुब्रमण्यम भारती का स्मारक अवश्य बनेगा।

तीन दिवसीय आयोजन के उद्घाटन सत्र में साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष डॉ. कुमुद शर्मा, हिन्दी प्रचार सभा के जीवी. हिरेमठ, ट्रस्टी सुषमा अग्रवाल, एडवोकेट भरत नागर, लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक राय, पी. राधिका, डॉ. वुडेपी कृष्णा, काशी के डॉ. दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव ने भी विचार व्यक्त किए। इस सत्र का संचालन डॉ. राममोहन पाठक एवं धन्यवाद ज्ञापन एडवोकेट शरद कुमार त्रिपाठी ने किया।

विभिन्न राज्यों के 11 साहित्यकारों को साहित्य सेतुसम्मान

राज्यपाल रवि ने इस अवसर पर हिन्दी साहित्य की सेवा करने वाले देश के विभिन्न राज्यों के 11 साहित्यकारों को ‘साहित्य सेतु’ सम्मान से अलंकृत किया। यह सम्मान पाने वालों में दक्षिण भारत के हिन्दी प्रचारक डॉ. एन. राजेंद्र बाबू, हिन्दी प्रचारक संघ चेन्नई के जनरल सेक्रेटरी डॉ. जे. अशोक कुमार जैन, दक्षिण भारत के हिन्दी प्रचारक तिरु पी. संमुगम, पी. उषारानी, पंजाब विश्वविद्यालय के डॉ. किंशुक पाठक, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के विभागाध्यक्ष प्रो. मंजूनाथ, हिन्दी में 20 से अधिक पुस्तकों की लेखिका वयोवृद्ध राजलक्ष्मी कृष्णनन, मैसूर में पुष्पा हिन्दी विद्यालय की संस्थापक डॉ. पुष्पा एल., असम के तेजपुर की लेखिका उषा टिबड़ेवाल, दक्षिण भारत के हिन्दी प्रचारक वीएन. ईश्वरा, आदिवासी साहित्य के सृजन के लिए सोनभद्र के ओमप्रकाश त्रिपाठी शामिल हैं।

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