नई दिल्ली, 31 अगस्त। अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मदद के सहारे वर्षों से गुजर-बसर कर रहे अफगानिस्तान में गत 15 अगस्त से तालिबानी शासन आते ही सभी पुराने मददगारों ने हाथ खींच लिए हैं। इस क्रम में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक व अन्य वैश्विक आर्थिक एजेंसियों ने अपनी मदद रोकने की घोषणा की है। दूसरी ओर, अमेरिका और ब्रिटेन ने अफगानिस्तान के खाते सीज कर दिए हैं। नतीजा यह हुआ है कि तालिबान अब अलग-थलग पड़ने लगा है। अब मंगलवार को अमेरिकी सेना की भी वापसी के बाद आधिकारिक रूप से शासन शुरू करने जा रही तालिबानी सरकार के लिए आर्थिक मोर्चा सबसे बड़ी चुनौती है।
60 देशों से 12 अरब डॉलर की मदद मिलनी थी, जो अब नहीं मिलेगी
दरअसल, विश्व बैंक व अन्य अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर दुनिया के जिन 60 देशों की ओर से अगले चार साल में अफगानिस्तान को 12 अरब डॉलर की आर्थिक मदद मिलनी थी, उनमें से ज्यादातर देश इसे फिलहाल रोक चुके हैं। आर्थिक मदद पर अंतिम फैसले के लिए प्रस्तावित बैठक नवम्बर में होनी थी, जो अब तक नहीं हुई है।
अमेरिका में फंसा 7 अरब डॉलर, आईएमएफ ने 46 करोड डॉलर की राशि फ्रीज की
इस क्रम में अंतरराष्ट्री य मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अफगानिस्तान को मिलने वाली 46 करोड़ डॉलर की रकम फ्रीज कर दी तो अमेरिका अमेरिका में बाइडेन प्रशासन ने अफगानिस्तान सेंट्रल बैंक के विदेशी भंडार की करीब सात अरब डॉलर की राशि फ्रीज कर दी, जो फेडरल रिजर्व बैंक ऑफ न्यूयॉर्क में जमा है।
यूरोपीय यूनियन, जर्मनी और ब्रिटेन ने भी लगाई रोक
उधर पश्चिमी देशों के संघ यूरोपीय यूनियन ने कहा है कि जब तक स्थिति स्पष्ट नहीं होती, अफगानी अधिकारियों को कोई भुगतान नहीं किया जाएगा। यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी ने भी अफगानिस्तान की मदद पूरी तरह रोक दी है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी कहा है कि यदि तालिबान अपने यहां महिलाओं को समान हक दे और मानवाधिकार का ध्यान रखे तो उनकी सरकार उस विदेशी भंडार को जारी कर सकती है, जो उसने फ्रीज कर दिया है।
सिर्फ चीन ने दिया मदद का आश्वासन
फिलहाल चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, ‘अफगान मुद्दे पर चीन की स्थिति स्पष्ट है। हम अफगानिस्तान के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए पूरी सहायता करते रहे हैं, जो जारी रहेगी। देश में अराजकता और जंग खत्म होने के बाद देश के संसाधनों के निर्माण के लिए हम वित्तीय व्यवस्था शुरू करने में तालिबानी सरकार की मदद करेंगे।’
हर हफ्ते सिर्फ 200 डॉलर निकाल सकेंगे अफगानी
इस बीच अफगानिस्तान में आर्थिक भंडार की स्थिति को देखते हुए तालिबानी सरकार ने घोषणा की है कि देश में हर बैंक खाताधारक प्रति सप्ताह अधिकतम 200 डॉलर यानी करीब 15 हजार रुपये ही निकाल सकता है। स्थानीय मीडिया ने रिपोर्ट की है कि तालिबान की घोषणा के बाद वहां बैंकों से कैश निकालने के लिए अफगानियों की भीड़ लग गई। वैसे अफगानिस्तान पहले से ही गरीबी की मार झेल रहा है, जहां 2013 में 39 फीसदी गरीबी दर थी, जो 2017 में बढ़कर 55 फीसदी हो गई। दूसरी ओर, कोरोना महामारी के कारण महंगाई दर बढ़कर 8.7 प्रतिशत पहुंच गई।
अफीम ही तालिबान की कमाई का सबसे बड़ा स्रोत
देखा जाए तो अफगानिस्तान में बड़े पैमाने पर होने वाली अफीम की पैदावार ही तालिबान की कमाई का सबसे बड़ा स्रोत है। यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम की रिपोर्ट कहती है कि दुनिया की 80 फीसदी अफीम यहीं होती है, जिसे बेचकर और उसकी तस्करी करके तालिबानी लड़ाके पिछले 20 वर्षों से खुद को आर्थिक रूप से चलाते रहे हैं। रिपोर्ट का आंकलन है कि 2018-19 में ड्रग ट्रेड के जरिए तालिबान के पास करीब तीन हजार करोड़ रुपए आए। अब यह देखना दिलचस्प रहेगा कि बाकी दुनिया की मदद बंद होने के बाद तालिबानी शासन कितनी दूर तक जाता है।