नई दिल्ली, 2 जनवरी। बिहार सरकार को आज सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली, जब शीर्ष अदालत ने जाति आधारित सर्वेक्षण आंकड़ों के आधार पर राज्य सरकार को आगे निर्णय लेने से रोकने से इनकार कर दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पब्लिक डोमेन में डाले गए आंकड़ों के विभाजन की सीमा पर भी सवाल उठाया और राज्य सरकार आदेश दिया कि जाति आधारित सर्वे के आंकड़े सार्वजनिक होने चाहिए।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने दो अगस्त, 2023 के पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अगली सुनवाई के लिए 29 जनवरी की तिथि तय की है। पटना उच्च न्यायालय के आदेश में जाति-आधारित सर्वेक्षण करने के बिहार सरकार के फैसले को बरकरार रखा गया था।
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने अंतरिम निर्देश की मांग की और कहा कि रिपोर्ट को लागू करने और आरक्षण को 50 से बढ़ाकर 70 प्रतिशत करने की तत्काल आवश्यकता है और इसे पटना हाई कोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई है।
इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा, ‘सर्वेक्षण रिपोर्ट से ज्यादा मुझे इस बात की चिंता थी कि यह डेटा का विभाजन है, जो आम तौर पर जनता के लिए उपलब्ध नहीं कराया जाता है और इससे बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं। एक बार आप सर्वेक्षण करने के हकदार हैं, लेकिन फिर डेटा के विश्लेषण को किस हद तक रोक सकते हैं।’
गौरतलब है कि बिहार सरकार ने पिछले वर्ष अक्टूबर में अपने सर्वेक्षण के नतीजे सार्वजनिक किए थे। बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने पीठ को बताया कि सर्वेक्षण पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है।
न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, ‘लेकिन डेटा का विवरण आम तौर पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए क्योंकि जब लोग किसी विशेष अनुमान को चुनौती देना चाहते हैं, तो उन्हें यह दिया जाना चाहिए, अगर कोई निकाले गए विशेष अनुमान को चुनौती देने को तैयार है तो उसे वह डेटा प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए।’