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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी – नफरती भाषण अस्वीकार्य, समुदायों के बीच सद्भाव और भाईचारा आवश्यक

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नई दिल्ली, 11 अगस्त। उच्चतम न्यायालय ने समुदायों के बीच सौहार्द और भाईचारा बरकरार रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए हरियाणा में हाल में हुए सांप्रदायिक दंगों के मद्देनजर दर्ज मामलों की जांच के लिए राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) द्वारा समिति गठित किए जाने पर शुक्रवार को विचार किया। राज्य में हुई हिंसा में छह लोगों की मौत हो गई थी।

डीजीपी द्वारा समिति गठित किए जाने की सूचना मांगी

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट हरियाणा समेत विभिन्न राज्यों में हुई रैलियों के दौरान एक विशेष समुदाय के सदस्यों की हत्या और उनके सामाजिक एवं आर्थिक बहिष्कार के आह्वान संबंधी कथित “घोर नफरत भरे भाषणों” को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रहा था। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से निर्देश लेने और 18 अगस्त तक समिति के बारे में सूचित करने को कहा।

पीठ ने कहा, “समुदायों के बीच सद्भाव और सौहार्द होना चाहिए। सभी समुदाय जिम्मेदार हैं। नफरती भाषण की समस्या अच्छी नहीं है और कोई भी इसे स्वीकार नहीं कर सकता। हम डीजीपी से उनके द्वारा नामित तीन या चार अधिकारियों की एक समिति गठित करने के लिए कह सकते हैं, जो एसएचओ से सभी जानकारियां प्राप्त करेगी और उनका अवलोकन करेगी और यदि जानकारी प्रामाणिक है, तो संबंधित पुलिस अधिकारी को उचित निर्देश जारी करेगी। एसएचओ और पुलिस स्तर पर पुलिस को संवेदनशील बनाने की जरूरत है।”

सॉलिसिटर जनरल बोले – नफरती भाषणों से निबटने का तंत्र कुछ जगहों पर निष्क्रिय

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को वीडियो सहित सभी सामग्री एकत्र करने और उसके 21 अक्टूबर 2022 के फैसले के अनुसरण में नियुक्त नोडल अधिकारियों को सौंपने का भी निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान, नटराज ने कहा कि भारत सरकार भी नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ है, जिसकी पूरी तरह से जांच की जानी चाहिए। उन्होंने स्वीकार किया कि नफरत फैलाने वाले भाषणों से निबटने का तंत्र कुछ जगहों पर काम नहीं कर रहा है।

पत्रकार शाहीन अब्दुल्ला द्वारा दाखिल अर्जी में उच्चतम न्यायालय के दो अगस्त के उस आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया था, “हम उम्मीद करते हैं कि राज्य सरकारें और पुलिस यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी समुदाय के खिलाफ कोई नफरत भरा भाषण न दिया जाए और कोई हिंसा न हो या संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जाए।”

शुरुआत में, अब्दुल्ला की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि लोगों को नफरत भरे भाषणों से बचाने की जरूरत है और “इस तरह का जहर परोसे जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।” जब पीठ ने सिब्बल से एक समिति गठित करने के विचार के बारे में पूछा तो वरिष्ठ वकील ने कहा, “मेरी दिक्कत यह है कि जब कोई दुकानदारों को अगले दो दिन में मुसलमानों को बाहर निकालने की धमकी देता है, तो यह समिति मदद नहीं करने वाली है।”

सिब्बल ने कहा कि पुलिस कहती रहती है कि प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है, लेकिन अपराधियों को कभी गिरफ्तार नहीं किया जाता या उन पर मुकदमा नहीं चलाया जाता। सिब्बल ने कहा, “समस्या प्राथमिकी दर्ज करने की नहीं है, समस्या यह है कि क्या प्रगति हुई? वे किसी को गिरफ्तार नहीं करते, न ही किसी पर मुकदमा चलाते हैं। प्राथमिकी दर्ज होने के बाद कुछ नहीं होता।”

18 अगस्त को होगी मामले की अगली सुनवाई

इस मामले में अब अगली सुनवाई 18 अगस्त को होगी। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि नफरत भरे भाषणों से माहौल खराब होता है और जहां भी आवश्यक हो, पर्याप्त पुलिस बल या अर्धसैनिक बल को तैनात किया जाना चाहिए और सभी संवेदनशील क्षेत्रों में सीसीटीवी कैमरे के जरिये वीडियो रिकॉर्डिंग सुनिश्चित की जाए।

अर्जी में कहा गया है कि शीर्ष अदालत के आदेश के बावजूद, हरियाणा के नूंह में सांप्रदायिक झड़पों के बाद विभिन्न राज्यों में 27 से अधिक रैलियां आयोजित की गईं और नफरत भरे भाषण दिए गए। इसमें कहा गया है, ‘‘उपरोक्त आदेश के बावजूद, विभिन्न राज्यों में 27 से अधिक रैलियां आयोजित की गई हैं, जहां एक समुदाय विशेष के लोगों की हत्या और सामाजिक एवं आर्थिक बहिष्कार का आह्वान करने वाले नफरत भरे भाषण खुलेआम दिए गए हैं।

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