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सुप्रीम कोर्ट ने ‘वन रैंक वन पेंशन’ की नीति को सही ठहराया, तीन महीने में बकाया भुगतान करने का निर्देश

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नई दिल्ली, 16 मार्च। केंद्र सरकार को उस समय बड़ी राहत मिली, जब सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए लागू ‘वन रैंक वन पेंशन’ (ओआरओपी) की नीति को यह कहते हुए सही ठहराया कि इसमें कोई संवैधानिक कमी नहीं है।

मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने कहा, ‘नीति में पांच वर्षों में जो पेंशन की समीक्षा का प्रावधान है, वह बिल्कुल सही है और सरकार के नीतिगत मामलों में हम दखल नहीं देना चाहते। इसी प्रावधान के तहत सरकार एक जुलाई, 2019 की तारीख से पेंशन की समीक्षा करे। अदालत ने सरकार से सेवानिवृत्त सैनिकों को तीन महीने में बकाये का भुगतान करने के लिए कहा।

उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन (आईईएसएम) ने सरकार के वर्ष 2015 की ‘वन रैंक वन पेंशन नीति’ के फैसले को चुनौती दी थी। इसमें उन्होंने दलील दी थी कि यह फैसला मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है क्योंकि यह वर्ग के भीतर वर्ग बनाता है और प्रभावी रूप से एक रैंक को अलग-अलग पेंशन देता है।

केंद्र सरकार के इस फैसले का हो रहा था विरोध

दरअसल, केंद्र सरकार ने सात नवंबर, 2015 को वन रैंक वन पेंशन योजना (ओरोप) की अधिसूचना जारी की थी, जिसमें कहा गया था कि इस योजना की समीक्षा पांच वर्षों में की जाएगी। लेकिन भूतपूर्व सैनिक संघ की मांग थी कि इसकी समीक्षा एक साल के बाद हो। इसी बात को लेकर दोनों पक्षों के बीच मतभेद चल रहा था।

शीर्ष अदालत ने 16 फरवरी की सुनवाई ने केंद्र पर उठाए थे सवाल

इससे पहले गत 16 फरवरी की सुनवाई में अदालत ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्र की अतिशयोक्ति ‘ओरोप’ नीति पर आकर्षक तस्वीर प्रस्तुत करती है जबकि इतना कुछ सशस्त्र बलों के पेंशनरों को मिला नहीं है। इस पर केंद्र ने अपना बचाव करते हुए कहा था कि यह मंत्रिमंडल का लिया गया फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि ‘ओरोप’ की अब तक कोई वैधानिक परिभाषा नहीं है।

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