नई दिल्ली, 25 जनवरी। सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव से पहले सार्वजनिक कोष से ‘अतार्किक मुफ्त सेवाएं’ वितरित करने या इसका वादा करने वाले राजनीतिक दलों का चुनाव चिह्न जब्त करने या उनकी मान्यता रद करने का दिशानिर्देश देने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर केंद्र और निर्वाचन आयोग से मंगलवार को जवाब मांगा।
भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने दाखिल कर रखी है जनहित याचिका
देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमन, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र एवं निर्वाचन आयोग से चार सप्ताह में जवाब देने को कहा है।
याचिका में कहा गया है कि मतदाताओं से अनुचित राजनीतिक लाभ लेने के लिए इस प्रकार के लोकलुभावन कदम उठाने पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए क्योंकि यह संविधान का उल्लंघन है और निर्वाचन आयोग को इसके खिलाफ उचित काररवाई करनी चाहिए।
सीजेआई की पीठ ने एस. सुब्रमण्यम बालाजी के मामले में 2013 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें चुनाव पूर्व वादा किए जाने वाली मुफ्त योजनाओं पर तंज कसा था, लेकिन उसे भ्रष्ट चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं कहा था।
शीर्ष अदालत ने मुफ्त चुनावी घोषणाओं को गंभीर मुद्दा बताया
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग ने दो हफ्ते में जवाब देने के लिए कहा है कि वे चुनाव के दौरान मुफ्त योजनाओं की घोषणा को विनियमित करने के लिए क्या उपाय अपना रही हैं। इसी क्रम में अदालत ने मुफ्त चुनावी घोषणाओं को गंभीर मुद्दा बताते हुए कहा है कि यह मतदाताओं और चुनाव की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकता है।