नई दिल्ली, 17 मई। सर्वोच्च न्यायालय ने वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थानीय न्यायालय के आदेश से कराए गए सर्वे से उपजे विवाद पर कहा है कि मस्जिद परिसर में जहां शिवलिंग मिला है, वह स्थान सुरक्षित रखा जाएगा। लेकिन मुस्लिमों के नमाज पढ़ने पर कोई रोक नहीं लगाई जाएगी।
शीर्ष अदालत ने वाराणसी कोर्ट के लिए जारी किया आदेश
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने इस मामले में मस्जिद पक्ष की ओर से दायर की गई आपत्ति याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की। दोनों पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद बेंच ने कहा, ‘हम इस मामले में नोटिस जारी कर रहे हैं। हम वाराणसी कोर्ट को आदेश दे रहे हैं कि मस्जिद परिसर में जहां शिवलिंग मिला है, उस जगह को सुरक्षित रखा जाए। लेकिन इसके साथ ही मुस्लिम लोगों को नमाज पढ़ने की भी आजादी होगी।’
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद का रखरखाव करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने ‘प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ का हवाला देते वाराणसी कोर्ट के सर्वे के आदेश को गलत बताते हुए यथा-स्थिति बरकरार रखने की अपील की थी। शीर्ष अदालत में मस्जिद कमेटी की ओर से हुफैजा अहमदी ने पक्ष रखा। वहीं यूपी सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल तुषार मेहता पेश हुए।
जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस नरसिम्हा की बेंच ने सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष से कहा कि वाराणसी कोर्ट में दायर किया गया मामला मालिकाना हक का नहीं है बल्कि उसमें तो श्रृंगार गौरी की पूजा करने की मांग की गई है।
मुस्लिम पक्ष की दलील – पूजा की अनुमति दी गई तो परिसर की स्थिति बदल जाएगी
इस पर मुस्लिम पक्ष ने दलील दी कि अगर मस्जिद परिसर स्थित श्रृंगार गौरी समेच अन्य दूसरे देवताओं के पूजा या दर्शन का अधिकार दिया जाता है तो वहां पूजा, आरती और भोग की मांग भी उठेगी और इस कारण मस्जिद परिसर की स्थिति बदल जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि सर्वे का स्टेटस क्या है? इस पर मुस्लिम पक्ष ने कहा कि सर्वे के बाद मस्जिद परिसर को सील किया जा रहा है, लेकिन ये गैरकानूनी है। अगर वाराणसी कोर्ट के आदेशानुसार मस्जिद परिसर को सील किया जा रहा है तो उससे यथास्थिति भंग होगी और ये सीधे तौर पर ‘प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ का उल्लंघन होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा – यह मालिकाना हक का नहीं, पूजा की मांग का मामला है
मुस्लिम पक्ष यह तर्क सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके पैरोकार अहमदी से कहा कि यह मामला तो मालिकाना हक का है ही नहीं, यह तो सीधे-सीधे पूजा की मांग का मामला है। इसके जवाब में अहमदी ने कहा कि इसी अदालत ने आदेश पारित किया हुआ है कि 15 अगस्त, 1947 को जो भी धर्म स्थल जिस भी स्थिति में थे, उन्हें उसी स्वरूप में रखा जाएगा और उनके किसी भी तरह का बदलाव नहीं किया जा सकता है जबकि वाराणसी कोर्ट द्वारा मस्जिद परिसर को सील करने का आदेश जारी किया गया है, जो सरासर गलत है।
प्रकरण की अगली सुनवाई 19 मई को होगी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम इस मामले में क्या कर सकते हैं, क्या हम पूजा-अर्चना की याचिका खारिज करने के लिए वाराणसी कोर्ट को ऑर्डर दें। इसके जवाब में अहमदी ने बोला कि आप विवाद को जन्म देने वाले सभी निर्देशों को निरस्त करें क्योंकि ये सब संसद के नियमों के खिलाफ हैं।’ इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 19 मई को तारीख दे दी।