नई दिल्ली, 7 नवम्बर। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के नियमों में बीच में तब तक बदलाव नहीं किया जा सकता, जब तक कि ऐसा निर्धारित न किया गया हो।
भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया आवेदन आमंत्रित करने वाले विज्ञापन जारी करने से शुरू होती है और रिक्तियों को भरने के साथ समाप्त होती है। पीठ ने कहा, ‘‘ भर्ती प्रक्रिया के प्रारंभ में अधिसूचित सूची में दर्ज पात्रता मानदंड को भर्ती प्रक्रिया के बीच में तब तक नहीं बदला जा सकता, जब तक कि मौजूदा नियम इसकी अनुमति न दें या विज्ञापन मौजूदा नियमों के विपरीत न हो।’
पीठ में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा, न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि चयन नियम मनमाने नहीं बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुरूप होने चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने सर्वसम्मति से कहा कि पारदर्शिता और गैर-भेदभाव सार्वजनिक भर्ती प्रक्रिया की पहचान होनी चाहिए तथा बीच में नियमों में बदलाव करके उम्मीदवारों को हैरान- परेशान नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि वैधानिक शक्ति वाले मौजूदा नियम प्रक्रिया और पात्रता दोनों के संदर्भ में भर्ती निकायों पर बाध्यकारी हैं।
पीठ ने कहा, ‘चयन सूची में स्थान मिलने से नियुक्ति का कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं मिल जाता। राज्य या उसकी संस्थाएं वास्तविक कारणों से रिक्त पद को न भरने का विकल्प चुन सकती हैं।’ हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि रिक्तियां मौजूद हैं, तो राज्य या उसकी संस्थाएं मनमाने ढंग से उन व्यक्तियों को नियुक्ति देने से इनकार नहीं कर सकती, जो चयन सूची में विचाराधीन हैं।
शीर्ष अदालत ने सरकारी नौकरियों के लिए नियुक्ति मानदंड से संबंधित एक प्रश्न का उत्तर दिया, जिसे मार्च 2013 में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने उसे सौंपा था। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 1965 के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा था कि यह एक अच्छा सिद्धांत है कि जहां तक पात्रता मानदंडों का सवाल है, राज्य या उसके तंत्रों को ‘खेल के नियमों’ के साथ छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।