नई दिल्ली,11 अगस्त। सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों की ओर से मुफ्त सुविधाएं देने के चुनावी वादों (रेवड़ी कल्चर) के खिलाफ दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को महत्वपूर्ण टिप्पणी में कहा कि चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार का वादा और वितरण एक गंभीर मुद्दा है क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है।
शीर्ष अदालत अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें चुनावों से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। याचिका में चुनाव घोषणापत्र को विनियमित करने और उसमें किए गए वादों के लिए राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाने के लिए कदम उठाने के लिए कहा गया है।
सीजेआई रमना बोले – गंभीर मुद्दा है, लिहाजा दोनों पक्षों को सुनना पड़ेगा
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा, ‘कोई नहीं कहता कि यह कोई मुद्दा नहीं है। यह एक गंभीर मुद्दा है। जिन्हें सुविधाएं मिल रही हैं, वे इसे पाना चाहते हैं और हम एक कल्याणकारी राज्य हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि वे करों का भुगतान कर रहे हैं और इसका उपयोग विकास प्रक्रिया के लिए किया जाना है। तो यह एक गंभीर मुद्दा है। इसलिए समिति को दोनों पक्षों को सुनना पड़ेगा।’
मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी
सुनवाई के दौरान सीजेआई रमना ने यह भी कहा कि भारत एक ऐसा देश है, जहां गरीबी है और केंद्र सरकार की भी भूखों को खिलाने की योजना है। उन्होंने कहा कि लोक कल्याण की योजनाओं और मुफ्त सुविधाओं को संतुलित करना होगा। शीर्ष अदालत इस मामले में अगली सुनवाई 17 अगस्त को करेगी।
बहस का केंद्र बन चुका है ‘रेवड़ी कल्चर‘
गौरतलब है कि चुनावों के दौरान मुफ्त सुविधाएं देने के वादों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘रेवड़ी कल्चर’ कहा था। वह कई बार खुले मंच से इसकी आलोचना कर चुके हैं। बुधवार को ही हरियाणा के पानीपत में एथेनॉल प्लांट के उद्घाटन के मौके पर उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि देश के विकास के लिए यह जरूरी है कि सरकार के पास पैसा हो और तभी वह निवेश कर सकेगी। उन्होंने कहा कि हर चीज मुफ्त में उपलब्ध कराने का वादा करने वाले देश के बच्चों का भविष्य छीन लेंगे।