नई दिल्ली, 19 जनवरी। सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता बहाली की सात अगस्त, 2023 की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति भूषण आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने याचिका को न सिर्फ तुच्छ करार दिया वरन याचिकाकर्ता वकील पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी ठोक दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह की याचिका से कीमती समय बर्बाद होता है।
शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता वकील पर एक लाख का जुर्माना भी ठोका
गौरतलब है कि मोदी उपनाम से संबंधित 2019 के आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने के शीर्ष अदालत के आदेश के बाद राहुल गांधी की सदस्यता बहाल कर दी गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालत ने पिछले वर्ष अक्टूबर में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता मोहम्मद फैजल की लोकसभा सदस्यता की बहाली को चुनौती देने के लिए वकील-याचिकाकर्ता अशोक पांडे की एक समान जनहित याचिका खारिज कर दी थी और उन पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।
याची ने चुनाव आयोग से वायनाड में नए सिरे से चुनाव कराने की भी मांग की थी
वर्तमान याचिका में अशोक पांडे ने दावा किया कि दोषसिद्धि और सजा के आधार पर अयोग्यता तब तक लागू रहेगी, जब तक इसे अपील में रद नहीं कर दिया जाता। उन्होंने चुनाव आयोग को राहुल गांधी की वायनाड सीट रिक्त होने की अधिसूचना जारी करने और वहां नए सिरे से चुनाव कराने का निर्देश देने की भी मांग की थी।
कोर्ट ने कहा – ऐसी याचिका पर अनुकरणीय जुर्माना लगाया जाना चाहिए
शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कहा कि प्रत्येक याचिका को कई सत्यापन अभ्यासों से गुजरना होगा। इसमें आगे कहा गया है कि वादियों को जनहित याचिका (पीआईएल) के अधिकार क्षेत्र का दुरुपयोग करने से रोकने के लिए ऐसी याचिका पर अनुकरणीय जुर्माना लगाया जाना चाहिए।
अगस्त, 2023 में पुनर्बहाल हुई थी राहुल की लोकसभा सदस्यता
पिछले साल अगस्त में, शीर्ष अदालत ने राहुल गांधी की संसद सदस्यता को पुनर्जीवित करने का मार्ग प्रशस्त किया था, जिसे उन्होंने 2019 के आपराधिक मानहानि मामले में दो साल की जेल की सजा के कारण खो दिया था। शीर्ष अदालत ने कांग्रेस नेता की सजा पर इस आधार पर रोक लगा दी थी कि ट्रायल जज यह बताने में विफल रहे कि राहुल गांधी कानून के तहत अधिकतम सजा के हकदार क्यों थे। पीठ ने कहा था कि गांधी की अयोग्यता जारी रहने से उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोग संसद में उचित प्रतिनिधित्व से वंचित हो जाएंगे।