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मरीजों को दवाओं के साइड इफेक्ट बताने संबंधी याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज

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नई दिल्ली, 14 नवम्बर। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें मेडिकल प्रोफेशनल को मरीजों के लिए निर्धारित दवाओं से जुड़े सभी प्रकार के संभावित रिस्क और साइड इफेक्ट्स को अनिवार्य करने की मांग की गई थी।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने मामले पर सुनवाई की। इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने मामले में सुनवाई की थी और याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में गत 15 मई को चुनौती दी गई थी।

सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता जैकब वडक्कनचेरी का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सुनवाई के दौरान जोर देकर कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है कि क्या डॉक्टरों को अपने मरीजों को उनके द्वारा लिखी जा रही दवाओं के संभावित साइड इफेक्ट के बारे में सूचित करने के लिए बाध्य होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा – यह व्यावहारिक नहीं

इस पर पीठ ने कहा कि यह व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि इसका पालन किया गया तो एक सामान्य चिकित्सक 10 से 15 से अधिक मरीजों का इलाज नहीं कर सकेगा और फिर कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत मामले दर्ज हो सकते हैं।

लापरवाही के मामलों से बचाव

प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि इससे चिकित्सा लापरवाही के कंज्यूमर प्रोटेक्शन मामलों से बचने में मदद मिलेगी। पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि डॉक्टर कोर्ट के फैसले से खुश नहीं हैं, जिसने मेडिकल प्रोफेशनल्स को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में लाया है।

इस पर भूषण ने कहा कि डॉक्टरों के लिए निर्धारित दवाओं के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में एक प्रिंटेड प्रोफॉर्मा तैयार करवाया जा सकता है। डब्ल्यूएचओ ने भी गलत दवाओं के कारण रोगियों को होने वाले नुकसान को उजागर किया है। फिलहाल दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि वह याचिका पर विचार करने के लिए उत्सुक नहीं है और याचिका खारिज कर दी।

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