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सुप्रीम कोर्ट का CAA पर रोक लगाने से इनकार, केंद्र से मांगा 3 हफ्ते में मांगा जवाब, अगली सुनवाई 9 अप्रैल को

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नई दिल्ली, 19 मार्च। सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम,1999 (CAA) पर किसी भी तरह की रोक लगाने से फिलहाल इनकार कर दिया है। हालांकि शीर्ष अदालत ने अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है।

दरअसल, CAA के खिलाफ देशभर से दाखिल 200 से ज्यादा याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार से पूछा कि नोटिफिकेशन पर रोक की मांग वाली याचिका पर जवाब देने के लिए उसे कितना समय चाहिए। केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल ने चार हफ्ते का का समय मांगा था। हालांकि अदालत ने जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र को तीन हफ्ते का समय दिया है। मामले में अगली सुनवाई नौ अप्रैल को होगी।

केंद्र को समय देने का कपिल सिब्बल ने किया विरोध

याचिकाकर्ता में से एक की तरफ से पेश वकील कपिल सिब्बल ने केंद्र को समय दिए जाने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि सीएए को चार वर्ष हो गए। यदि एक बार लोगों को नागरिकता मिल गई तो फिर वापस करना मुश्किल होगा। उन्होंने कहा कि इसके बाद ये याचिकाएं निष्प्रभावी हो जाएंगी। सिब्बल ने कहा, ‘ये नोटिफिकेशन इंतजार कर सकता है। हम समय का विरोध नहीं कर रहे, चार साल बाद ऐसी क्या अर्जेंसी है।’ इसके साथ ही कपिल सिब्बल ने अदालत से नोटिफिकेशन पर रोक लगाए जाने की मांग की।

इंदिरा जयसिंह की मांग – यह मामला बड़ी बेंच को भेजा जाना चाहिए

याचिकाकर्ता की तरफ से अदालत में पेश अन्य वकील इंदिरा जयसिंह ने CAA पर रोक लगाने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि यह मामला बड़ी बेंच को भेजा जाना चाहिए। वहीं सीजेआई ने कहा कि जवाब के लिए केंद्र सरकार को कुछ समय दिया जा सकता है क्योंकि वह कुछ और समय मांगने की हकदार है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि 236 याचिकाओं में से कितने मामलों में अदालत ने नोटिस जारी की है।

असम के मामलों की सुनवाई अलग से होगी

चीफ जस्टिस ने कहा कि पहले से जारी आदेश के अनुसार असम के मामलों की सुनवाई अलग से की जाएगी। याचिकाकर्ताओं में से एक वकील ने कहा कि 6बी(4) कहता है कि सीएए असम के कुछ आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा। मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम पूरी तरह बाहर हैं। वहीं सीजेआई ने कहा कि पूरा राज्य बाहर नहीं है, बल्कि वो हिस्से ही इससे बाहर हैं, जो 6वीं अनुसूची में शामिल हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ऐसा तो शुरू से ही है।

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