नई दिल्ली, 3 जनवरी। उच्चतम न्यायालय ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें पर्यावरणीय मंजूरी के बिना परियोजनाओं को शुरू करने की अनुमति दी गई थी। न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने गैर सरकारी संगठन ‘वनशक्ति’ की ओर से दायर की गई याचिका पर पर्यावरण और वन मंत्रालय को नोटिस जारी किया है।
पीठ ने नोटिस के जवाब के लिए चार सप्ताह का समय देते हुए कहा कि अगले आदेश तक मंत्रालय के 20 जनवरी, 2022 के ज्ञापन पर रोक रहेगी। ‘वनशक्ति’ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि किसी भी गतिविधि की अनुमति देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन अनिवार्य है और मंत्रालय का 20 जनवरी, 2022 का आदेश पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के खिलाफ है।
उन्होंने तर्क दिया कि 2006 की पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिसूचना सभी परियोजनाओं के लिए काम करने से पहले पर्यावरणीय मंजूरी लेना अनिवार्य करती है और समस्या 2017 के एक कार्यालय ज्ञापन से शुरू हुई। इस आदेश में कथित उल्लंघनकर्ताओं को परियोजनों पर काम शुरू करने के बाद मंजूरी के लिए आवेदन करने की खातिर छह माह की अवधि प्रदान की गई है।
गैर सरकारी संगठन ने अपनी याचिका में कहा कि किसी परियोजना के लिए पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन केवल गतिविधि शुरू होने से पहले ही किया जा सकता है, उसके बाद नहीं। याचिका में मंत्रालय के आदेश की वैधता को चुनौती दी गई थी और पर्यावरण-वन मंत्रालय और राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे ‘‘उपरोक्त आदेश के तहत मंजूरी के लिए आने वाले आवेदनों पर विचार या कार्रवाई न करें।’’