Site icon hindi.revoi.in

किसान आंदोलन को झटका : सुप्रीम कोर्ट ने 43 किसान संगठनों को जारी की नोटिस

Social Share

नई दिल्ली, 4 अक्टूबर। लखीमपुर खीरी में हुई खूनी हिंसा के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने किसान आंदोलन को लेकर सख्त रुख अख्तियार किया है और 43 किसान संगठनों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली-नोएडा मार्ग पर रास्ता ब्लॉक किए जाने के खिलाफ दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए किसान संगठनों से पूछा, ‘जब हमने तीन कृषि कानूनों पर फिलहाल रोक लगा रखी है तो फिर सड़कों पर प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं?

मामले की अगली सुनवाई 20 अक्टूबर को होगी

ज्ञातव्य है कि नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल ने किसान आंदोलन के चलते दिल्ली-नोएडा यातायात बाधित रहने का मसला उठाया था और राष्ट्रीय राजधानी की इन बाधित सड़कों को खोलने की मांग की थी। इसी मसले को लेकर हरियाणा सरकार ने अंतरिम अर्जी दाखिल कर 43 किसान संगठनों को पक्षकार बनाने के लिए अर्जी दाखिल की थी। इस मामले में 20 अक्टूबर को अगली सुनवाई होगी।

जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस सी.टी. रविकुमार की खंडपीठ ने कहा, ‘किसानों ने पहले ही संविधान पीठ में मामला दाखिल कर रखा है। ऐसे में हमें इस बात की जांच करनी होगी कि लगातार किसानों को सड़कों पर आंदोलन करने की अनुमति दी जा सकती है या नहीं।’ ज्ञातव्य है कि किसान महापंचायत ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करके जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने की अनुमति मांगी थी।

जब कृषि कानूनों पर रोक है तो फिर सड़कों पर प्रदर्शन क्यों?

शीर्ष अदालत ने किसानों से पूछा, ‘एक बार आपने कोर्ट में कानूनों को चुनौती दे दी है तो प्रदर्शन करने का क्या मतलब है। अब मामला कोर्ट के अधीन है। आप कोर्ट में कानूनों को चुनौती भी दे रहे हैं और सड़क पर प्रदर्शन भी कर रहे हैं। कोर्ट में आपने अपने अधिकार का इस्तेमाल कर लिया। हमने कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक भी लगा दी। फिर आपको प्रदर्शन की अनुमति क्यों मिलनी चाहिए?’

समस्या के हल के लिए किसानों को चुनना होगा एक रास्ता

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि किसानों को एक रास्ता चुनना होगा। किसानों को या तो संसद के रास्ते अपनी समस्या का हल ढूंढ़ना होगा या कोर्ट के जरिए। तीसरा रास्ता प्रदर्शन का मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता कि किसान कोर्ट से भी समाधान मांगें और सड़क भी जाम करें। सुनवाई के बीच ही जस्टिस खानविलकर ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि आंदोलन के दौरान जब किसी की मौत होती है या संपत्ति का नुकसान होता है तो उसकी कोई उसकी जिम्मेदारी नहीं लेता।

सुनवाई के दौरान किसान महापंचायत ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसान संगठनों से उनका कोई लेना-देना नहीं है। वे शांतिपूर्वक जंतर-मंतर पर धरना देना चाहते हैं। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई अराजक घटना के बाद इन्होंने अपने आपको उन संगठनों से अलग कर लिया था। स्मरण रहे कि भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत की अगुआई में दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमाओं पर हजारों किसानों ने 10 महीने से डेरा डाल रखा है।

 

Exit mobile version