नई दिल्ली, 9 नवम्बर। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों में सांसदों और विधायकों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों पर चिंता जाहिर की है। इस क्रम में शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालयों से ऐसे मुकदमों की निगरानी करने को कहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसके साथ ही उच्च न्यायालयों के लिए इस बारे में गुरुवार को कई निर्देश भी जारी किए।
संसद और विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निबटान की मांग करने वाली याचिका पर अपना आदेश सुनाते हुए, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ऐसे कई कारक मौजूद हैं, जो विषयगत मामलों के शीघ्र निबटान को प्रभावित करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 7 निर्देशों का एक सेट भी जारी किया
पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिए अलग-अलग राज्यों में ऐसे मामलों के लिए ए एक समान या मानक दिशानिर्देश बनाना मुश्किल है। सुप्रीम कोर्ट ने निगरानी और सुनवाई के लिए सात निर्देशों का एक सेट भी जारी किया।
सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों से मामलों के शीघ्र निबटान की निगरानी के लिए ‘सांसदों, विधायकों के लिए नामित अदालतों में’ (एमपी-एमएलए कोर्ट) एक स्वत: संज्ञान मामला दर्ज करने के लिए कहा और कहा कि स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नियुक्त एक बेंच द्वारा की जा सकती है।
आदेश में कहा गया है कि स्वतः संज्ञान मामले की सुनवाई करने वाली विशेष पीठ आवश्यकतानुसार मामले को नियमित अंतराल पर सूचीबद्ध कर सकती है। साथ ही उच्च न्यायालय विषयगत मामलों के शीघ्र और प्रभावी निबटान के लिए आवश्यक आदेश या निर्देश जारी कर सकता है। विशेष पीठ अदालत की सहायता के लिए महाधिवक्ता या लोक अभियोजक को बुलाने पर विचार कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालयों को प्रमुख जिला और सत्र न्यायाधीश को ऐसे न्यायालय या अदालतों को विषयगत मामलों को आवंटित करने की जिम्मेदारी वहन करने की आवश्यकता हो सकती है, जो उचित और प्रभावी माना जाता है और प्रमुख जिला और सत्र न्यायाधीश को भेजने के लिए कह सकते हैं।