नई दिल्ली, 28 दिसम्बर। सुप्रीम कोर्ट ने अरावली हिल्स की परिभाषा में हाल ही में हुए बदलाव से पैदा हुई चिंताओं पर स्वत: संज्ञान लिया है। ऐसी आशंका है कि बिना रोक-टोक के माइनिंग और गंभीर पर्यावरण नुकसान का रास्ता खुल सकता है। प्रधान न्यायाधीश (CJI) जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जेके महेश्वरी और जस्टिस एजी मसीह की वेकेशन बेंच सोमवार को मामले पर विचार करेगी।
पर्यावरण विशेषज्ञों ने जताई चिंता
शीर्ष अदालत का यह दखल अरावली पहाड़ियों की बदली हुई परिभाषा के कारण हुए सार्वजनिक विरोध और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के बाद आया है। यह क्षेत्र अपने इकॉलॉजिकल महत्व और रेगिस्तान बनने से रोकने और भूजल स्तर को बनाए रखने में अपनी भूमिका के लिए जाना जाता है। पर्यावरण विशेषज्ञ और सिविल सोसाइटी संगठनों ने चिंता जताई है कि परिभाषा में बदलाव पहले से संरक्षित क्षेत्रों में माइनिंग और निर्माण गतिविधियों को कानूनी मान्याता मिल सकती है।
केंद्र सरकार द्वारा गठित समिति की सिफारिशों पर SC ने दी थी नई परिभाषा
पिछले माह सुप्रीम कोर्ट ने अरावली श्रृंखला को फिर से परिभाषित करने के 13 अक्टूबर के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इस परिभाषा के तहत केवल आसपास की भूमि से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची भू-आकृतियों को ही अरावली पहाड़ियों का हिस्सा माना जाएगा। इसके अलावा यदि दो या दो से अधिक पहाड़ियां एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में स्थित हैं तो उन्हें भी अरावली श्रृंखला का हिस्सा माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय परिभाषा के बाद छिड़ा नया राजनीतिक विवाद
शीर्ष अदालत द्वारा यह परिभाषा केंद्र सरकार द्वारा गठित एक समिति की सिफारिशों के आधार पर दी गई, जिसके बाद देशभर में एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। विपक्ष का दावा है कि इस कदम से दिल्ली से गुजरात तक 650 किलोमीटर लंबी पहाड़ी रेंज में बिना रोक-टोक माइनिंग और पर्यावरण को नुकसान होगा। वहीं देशभर में अरावली को बचाने को लेकर आंदोलन हो रहे हैं।
गौरतलब है कि दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात राज्यों में अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रंखलाओं की अलग-अलग परिभाषाओं के कारण रेगुलेटरी कमिया और अवैध खनन हो रहा था। इसे सुलझाने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने पहले हाई-लेवल कमेटी बनाई थी।
उसके बाद नवम्बर में दिए गए अपने फैसले में, तत्कालीन चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन और एनवी अंजारिया की बेंच ने खनन के संदर्भ में अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रंखलाओं के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की कमेटी द्वारा सुझाई गई ऑपरेशनल परिभाषा को स्वीकार कर लिया था।

