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सुप्रीम कोर्ट ने शैक्षणिक संस्थानों में समान ड्रेस कोड के लिए दायर जनहित याचिका खारिज की

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नई दिल्ली, 16 सितम्बर। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा चलाये जा रहे शैक्षणिक संस्थानों में कर्मचारियों और छात्रों के लिए समान ड्रेस कोड लागू करने की मांग को लेकर दायर की गई जनहित याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। शीर्ष अदालत ने इस संबंध में कहा कि यह ऐसा विषय नहीं है, जिस पर कोर्ट से किसी आदेश की अपेक्षा की जाए। यह पूरी तरह से केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारों का मामला है और इस विषय में दायर की गई जनहित याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता।

‘यह ऐसा कोई गंभीर मामला नहीं है, जिस पर अदालत विचार करे

जस्टिस हेमंत गुप्त और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, ‘यह ऐसा कोई गंभीर मामला नहीं है, जिस पर यह अदालत विचार करे या इस संबंध में कोई आदेश पारित करे। इसलिए हम इस याचिका को सुनवाई के लायक नहीं मानते हैं।’

जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई थी कि वह केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संचालित देश के तमाम शैक्षिक संस्थाओं में समानता को सुनिश्चित कराने और राष्ट्रीय एकता के साथ बंधुत्व को बढ़ावा देने के लिए समान ड्रेस कोड लागू करने का आदेश पारित करे।

सुप्रीम कोर्ट की ना के बाद याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका वापस ली

सुप्रीम कोर्ट में निखिल उपाध्याय की ओर से इस जनहित याचिका के मामले में पेश हुए वरिष्ठ वकील गौरव भाटिया ने कहा, ‘शैक्षिक संस्थाओं में समान ड्रेस कोड का मुद्दा दरअसल संवैधानिक मुद्दा है, लेकिन चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका की सुनवाई में अपनी अनिच्छा व्यक्त की है। इस कारण हम इस जनहित याचिका को वापस ले रहे हैं।’

सुप्रीम कोर्ट के वकील गौरव भाटिया भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता हैं और उनकी यह जनहित याचिका कर्नाटक ‘बुर्का’ विवाद के पृष्ठभूमि में दायर की गई थी। याचिका को खारिज करने वाले जस्टिस हेमंत गुप्त उस बेंच की भी अध्यक्षता कर रहे हैं, जो कर्नाटक सरकार द्वारा शैक्षणिक संस्थानों में बुर्के से प्रतिबंध हटाने से इनकार करने वाले कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।

जस्टिस हेमंत गुप्त की बेंच के समक्ष इस जनहित याचिका को दाखिल करने वाले वकील ने अपील की थी कि वो केंद्र को सामाजिक और आर्थिक न्याय, समाजवाद धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के मूल्यों को विकसित करने के उपायों को बताने के लिए एक न्यायिक आयोग या एक विशेषज्ञ पैनल बनाने का निर्देश दें। वहीं साथ में केंद्र और राज्यों के सरकारी शैक्षिक संस्थाओं में समान ड्रेस कोड लागू करने का आदेश दें ताकि छात्रों के बीच भाईचारा और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिले।

वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट वैकल्पिक रूप से संविधान के संरक्षक और मौलिक अधिकारों के रक्षक है, इस नाते उसे विधि आयोग को तीन महीने के भीतर सामाजिक समानता, भाईचारा, राष्ट्रीय गरिमा और एकता को बढ़ावा देने के लिए सुझाव देने वाली एक रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश देना चाहिए।’

उन्होंने कहा कि सरकारी शैक्षणिक संस्थान धर्मनिरपेक्ष सार्वजनिक स्थान हैं और ये शिक्षा के जरिये ज्ञान और रोजगार के लिए छात्रों को तैयार करके राष्ट्र निर्माण में अहम योगदान दे रहे हैं। इसलिए इन संस्थानों में सभी के लिए समान ड्रेस कोड लागू होना चाहिए न कि यहां पर गैर-जरूरी धार्मिक प्रथाओं का पालन करने के लिए छूट देनी चाहिए।

इसके साथ ही जनहित याचिका में कहा गया था कि शैक्षणिक संस्थानों के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बनाए रखने के लिए सभी स्कूल-कॉलेजों में एक कॉमन ड्रेस कोड लागू करना बहुत जरूरी है अन्यथा आने वाले समय में नागा साधु भी धार्मिक प्रथा का हवाला देते हुए बिना कपड़ों के विद्यालयों में प्रवेश की अनुमति मांग सकते हैं।

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