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सुप्रीम कोर्ट से तेलंगाना सरकार को बड़ा झटका : स्थानीय निकायों में ओबीसी कोटा 42% करने की याचिका खारिज

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नई दिल्ली, 16 अक्टूबर। सुप्रीम कोर्ट से तेलंगाना सरकार को झटका लगा है, जब शीर्ष अदालत ने गुरुवार को राज्य में स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण बढ़ाकर 42 प्रतिशत करने की रेवंत रेड्डी सरकार की याचिका खारिज कर दी। तेलंगाना सरकार ने सरकारी आदेश संख्या 9 पर हाई कोर्ट की रोक को चुनौती दी थी, जिसमें पिछड़ी जातियों के आरक्षण को बढ़ाने की मांग की गई थी।

जस्टिस विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने मामले की सुनवाई की। न्यायमूर्ति नाथ ने तेलंगाना सरकार के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि चुनावों की अधिसूचना जारी होने से पहले पिछड़ा वर्ग आरक्षण क्यों लागू नहीं किया गया। सिंघवी ने जवाब दिया कि राज्यपाल ने विधेयक को लंबित रखा था, और यह ‘मान्य स्वीकृति’ के आधार पर कानून बन गया था। उन्होंने तमिलनाडु राज्यपाल मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि कानून को चुनौती दिए बिना ही स्थगन प्राप्त कर लिया गया था।

दरअसल, तेलंगाना सरकार ने स्थानीय निकाय चुनावों के लिए ओबीसी को 42 प्रतिशत आरक्षण दे दिया था, जिसका अर्थ है कि कुल कोटा 67 प्रतिशत होगा। सरकार ने इसे ‘नीतिगत निर्णय’ करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि चुनाव मौजूदा आरक्षण के आधार पर होने चाहिए। यह भी कहा कि सीमा से अधिक होने पर छूट केवल अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों में ही लागू होती है, जो तेलंगाना में नहीं है।

सिंघवी ने घरेलू स्तर पर किए गए व्यापक सामाजिक-आर्थिक जाति सर्वेक्षण का हवाला देते हुए तर्क दिया कि राज्य के पास आरक्षण तय करने का अधिकार है। वहीं कृष्णमूर्ति मामले में दिए गए पिछले फैसलों की याद दिलाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सामान्य क्षेत्रों में, त्रिस्तरीय परीक्षण के तहत भी, आरक्षण 50% से अधिक नहीं हो सकता। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों को भी सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बढ़ाए गए आरक्षण को अस्वीकार किए जाने का सामना करना पड़ा था।

सिंघवी ने इस बात पर पलटवार किया कि 50 फीसदी की सीमा ‘अनम्य’ नहीं है और तेलंगाना ने इस वृद्धि को उचित ठहराने के लिए एक साल तक चलने वाला घरेलू सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण किया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि ट्रिपल-टेस्ट की शर्तें पूरी हो चुकी हैं और विधेयक और अध्यादेश लागू हैं।

हालांकि, पीठ इससे सहमत नहीं थी। जस्टिस मेहता ने कहा कि गवली फैसले में सामान्य क्षेत्रों में 50% से अधिक आरक्षण की अनुमति नहीं थी। अंततः सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और न्यायमूर्ति नाथ ने कहा, ‘आप अपने चुनाव जारी रख सकते हैं।’

दूसरी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने आरक्षण सीमा के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के पिछले निर्णयों का हवाला देते हुए हाई कोर्ट के फैसले का बचाव किया। उन्होंने कहा, ‘हमने जिस आदेश को चुनौती दी है, वह ओबीसी के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर देता है… जो कुल मिलाकर 60 प्रतिशत से ज्यादा हो जाता है।’ उन्होंने संविधान पीठ द्वारा दिए गए शीर्ष न्यायालय के 2010 के के. कृष्णमूर्ति फैसले का हवाला दिया, जिसमें 50 प्रतिशत की नीति की पुष्टि की गई थी।

हाई कोर्ट का यह आदेश पिछले महीने मुख्य न्यायाधीश अपरेश कुमार सिंह और न्यायमूर्ति जीएम मोहिउद्दीन द्वारा दिया गया था। यह आदेश तीन सरकारी आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दिया गया था, जिनमें से एक में 42 प्रतिशत आरक्षण का आदेश दिया गया था और अन्य दो में दिशानिर्देश निर्धारित किए गए थे।

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