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‘द केरल स्टोरी’ फिल्म के निर्माताओं को एक और डिस्केलमर जोड़ने का सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश

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नई दिल्ली, 18 मई। सुप्रीम कोर्ट ने ‘द केरल स्टोरी’ पर पश्चिम बंगाल में लगा बैन हटाने के साथ तमिलनाडु सरकार को फिल्म की स्क्रीनिंग के दौरान दर्शकों की सुरक्षा का इंतजाम करने का निर्देश देकर फिल्म निर्माताओं को बड़ी राहत प्रदान की। हालांकि शीर्ष अदालत ने निर्माताओं को फिल्म में 20 मई की शाम तक एक और डिस्क्लेमर जोड़ने का निर्देश दिया है। इस डिस्क्लेमर में यह बताना होगा कि 32 हजार महिलाओं के इस्लाम धर्म में परिवर्तन का कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान ‘द केरल स्टोरी’ के डायलॉग्स और सीन्स का भी जिक्र हुआ। इसके एक सीन के बारे में सुनकर जज भी चौंक गए।

हरीश साल्वे ने फिल्म के अंत में डिस्क्लेम दिए जाने की बात कही

फिल्म निर्माताओं की ओर से पेश हुए हरीश साल्वे ने कहा कि फिल्म के अंत डिस्क्लेमर दिया गया है कि यह काल्पनिक है और घटनाओं का नाटकीय रूपांतरण है। उन्होंने कहा, ‘केरल से 32,000 लड़कियों को इस्लाम में परिवर्तित किए जाने का आंकड़ा भी फिल्म से हटा लिया गया है, क्योंकि इस बात का कोई प्रामाणिक आधार नहीं है कि कितनी लड़कियों ने धर्मांतरण किया है। फिल्म तीन लड़कियों की कहानी दिखाती है, जिन्होंने इस दुर्भाग्य का सामना किया।’

कोर्ट ने कहा – 32,000 लड़कियों के धर्मांतरण का कोई प्रामाणिक आंकड़ा नहीं

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जे बी पारदीवाल की बेंच ने साल्वे से कहा, ‘हम निश्चित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करेंगे, लेकिन आप किसी समुदाय को बदनाम नहीं कर सकते। 32,000 (लड़कियों का धर्मांतरण) तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।’

निर्माता स्पष्ट करें कि फिल्म में घटनाओं का काल्पनिक वर्णन है

शीर्ष अदालत की टिप्पणी पर साल्वे ने फिल्म में एक और डिस्क्लेमर चलाने पर सहमति जताई तो बेंच ने निर्देश दिया कि उसमें विशेष रूप से यह बात होनी चाहिए कि 32 हजार धर्मांतरण के दावे के समर्थन में कोई प्रामाणिक डेटा नहीं है। शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि निर्माता स्पष्ट करें कि फिल्म में घटनाओं का काल्पनिक वर्णन है।

पत्रकार कुर्बान अली और बी आर अरविंदक्षण की याचिकाओं पर भी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार कुर्बान अली और बी आर अरविंदक्षण की याचिकाओं पर भी सुनवाई की। इन दोनों ने फिल्म व टीजर की रिलीज पर स्टे लगाने से इनकार करने के मद्रास हाई कोर्ट और केरल हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। इनके वकील कपिल सिब्बल और हुजेफा अहमदी ने कहा कि हम भी अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में है, लेकिन इस तरह की प्रॉपगैंडा फिल्मों के कारण समाज में पैदा होने वाली नफरत को देखना होगा। उन्होंने 32,000 लड़कियों के धर्मांतरण के आंकड़े का जिक्र करते हुए फिल्म के ट्रान्स्क्रिप्ट को पढ़ा और कहा कि यह अभी हटाया नहीं गया है। इसके अलावा, एक विशेष समुदाय को बदनाम करने वाले बयान हैं फिल्म में।

फिल्म के एक सीन और डायलॉग पर चौंके जज पारदीवाला

कपिल सिब्बल ने कहा कि इस तरह की बातें बोल गई हैं – जब तक तुम उन पर (काफिरों पर) थूकोगे नहीं, अल्लाह नहीं मिलेगा। इस पर जस्टिस पारदीवाला चौंके और पूछा, क्या फिल्म में ऐसा दिखाया गया है? इस पर सिब्बल बोले, हां। इसके बाद उन्होंने मौलवियों वाले सीन का जिक्र भी किया और बताया कि फिल्म में मौलवी मुस्लिम युवकों से गैर-मुस्लिम महिलाओं को रिझाने की बात कर रहे हैं और उन्हें प्रेग्नेंट करने की सीख दे रहे हैं।

सिब्ब्ल ने यह भी मांग की कि अदालत इसी सप्ताह के अंत में फिल्म देखे क्योंकि छुट्टी के बाद काफी नुकसान हो चुका होगा। केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस सुझाव का विरोध किया। उन्होंने कहा, ‘आम तौर पर सामाजिक वास्तविकताओं को एक फिल्म में पेश किया जाता है। यह फिल्म पूरे देश में चल रही है। फिल्मों के मामले में कोर्ट ने यह सिद्धांत अपनाया है कि अगर आपको कोई फिल्म पसंद नहीं है तो उसे मत देखिए। रिलीज पर रोक लगाने से गलत मिसाल कायम होगी।’

बेंच पहले फिल्म देखेगी और फिर फैसला करेगी

बेंच ने मामले को 18 जुलाई तक के लिए स्थगित करते हुए याचिकाकर्ताओं को आश्वासन दिया, ‘हम मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने की याचिका सुनने पर विचार करेंगे क्योंकि हमें पहले फिल्म देखनी है और फिर फैसला करेंगे।’

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