Site icon hindi.revoi.in

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश – पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के मामले में बिहार सरकार पेश करे रिकॉर्ड

Social Share

नई दिल्ली, 19 मई। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को आईएस अधिकारी की हत्या के मामले में पूर्व सांसद आनंद मोहन को दी गई छूट से जुड़े रिकॉर्ड पेश करने के निर्देश दिए हैं। शीर्ष अदालत ने साथ ही आनंद मोहन की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका को आठ अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि मामले में आगे कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा।

याचिका पर 8 अगस्त को होगी अगली सुनवाई

उल्लेखनीय है कि 1994 में बाहुबली नेता और तत्कालीन विधायक के नेतृत्व में भीड़ द्वारा मारे गए अधिकारी की पत्नी ने आनंद मोहन की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। तेलंगाना के रहने वाले और गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी कृष्णैया को 1994 में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला था। यह घटना उस समय हुई, जब उनका वाहन मुजफ्फरपुर जिले में गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के जुलूस से आगे निकलने की कोशिश कर रहा था। तब आनंद मोहन विधायक थे और उस शवयात्रा में शामिल थे।

सुप्रीम कोर्ट ने 8 मई को बिहार और केंद्र को जारी की थी नोटिस

इससे पहले पिछली सुनवाई में आठ मई को सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन की रिहाई को लेकर केंद्र और बिहार सरकार को नोटिस जारी की थी। आनंद मोहन को बिहार में जेल नियमों में संशोधन के बाद गत 27 अप्रैल को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया था।

गौरतलब है कि जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने अपनी याचिका में दलील दी है कि गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन को सुनाई गई उम्रकैद की सजा उनके पूरे जीवनकाल के लिए है और इसकी व्याख्या महज 14 वर्ष की कैद की सजा के रूप में नहीं की जा सकती। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा है, ‘जब मृत्युदंड की जगह उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है, तब उसका सख्ती से पालन करना होता है, जैसा कि न्यायालय का निर्देश है और इसमें कटौती नहीं की जा सकती।’

इस जेल नियम के बदले जाने पर हुआ था विवाद

आनंद मोहन का नाम उन 20 से अधिक कैदियों में शामिल है, जिन्हें जेल से रिहा करने के लिए राज्य के कानून विभाग ने हाल में एक अधिसूचना जारी की थी, क्योंकि वे जेल में 14 वर्षों से अधिक समय बिता चुके हैं। बिहार कारागार नियमावली में राज्य की महागठबंधन सरकार द्वारा 10 अप्रैल को संशोधन किये जाने के बाद आनंद मोहन की सजा घटा दी गई।

नियमावली में संशोधन के जरिए ड्यूटी पर तैनात लोकसेवक की हत्या में संलिप्त दोषियों की समय पूर्व रिहाई पर पाबंदी हटा दी गई थी। राज्य सरकार के इस फैसले के आलोचकों का दावा है, ऐसा मोहन की रिहाई को सुविधाजनक बनाने के लिए किया गया, जो जाति से राजपूत हैं और इससे नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन को भाजपा के खिलाफ उसकी लड़ाई में मदद मिल सकती है।

Exit mobile version