नई दिल्ली, 6 दिसम्बर। सुप्रीम कोर्ट ने भगोड़े कारोबारी मेहुल चोकसी और उसकी पत्नी को झटका देते हुए गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज धोखाधड़ी के मामले को बहाल कर दिया है जबकि उनके खिलाफ एफआईआर रद करने के गुजरात उच्च न्यायालय के 2017 का आदेश रद कर दिया है। उल्लेखनीय है कि मेहुल चोकसी अपने भतीजे नीरव मोदी के साथ पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) घोटाला मामले में भी आरोपित हैं, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर बैंक से 14,000 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की थी।
जालसाजी और धोखाधड़ी के आरोप
शिकायतकर्ता दिग्विजयसिंह हिम्मतसिंह जडेजा द्वारा 2015 में गुजरात पुलिस में दर्ज की गई एफआईआर के अनुसार, चोकसी और उनकी पत्नी पर 30 करोड़ रुपये के 24 कैरेट शुद्ध सोने की छड़ों से जुड़े व्यापारिक लेनदेन के संबंध में जालसाजी और धोखाधड़ी के अपराध का आरोप है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने 29 नवम्बर के अपने फैसले में उच्च न्यायालय के 5 मई, 2017 के आदेश को रद कर दिया और पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने को कहा।
पीठ ने कहा, ‘इस आदेश की टिप्पणियों को मामले की योग्यता पर टिप्पणियों या टिप्पणियों के रूप में नहीं पढ़ा जाएगा। जांच फैसले या वर्तमान आदेश में किए गए किसी भी निष्कर्ष या टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना जारी रहेगी।’
इसमें कहा गया है कि जांच करते समय, जांच अधिकारी भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी), 464 (जालसाजी) और 465 (जालसाजी के लिए सजा) की व्याख्या करते हुए शीर्ष अदालत और विभिन्न उच्च न्यायालयों के फैसलों को ध्यान में रखेगा।
उच्च न्यायालय की जांच की आलोचना की गई
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी में कहा गया है कि 23 जनवरी, 2015 की एफआईआर को रद करने की प्रार्थना को अनुमति देने वाले उच्च न्यायालय के आदेश से पता चलता है कि एक विस्तृत तथ्यात्मक जांच और मूल्यांकन किया गया था, जो उस स्तर पर आवश्यक नहीं था, जब जांच तब भी जारी थी। पीठ ने कहा, ‘हमारी राय है कि उक्त परीक्षा और मूल्यांकन उच्च न्यायालय द्वारा नहीं किया जाना चाहिए था।’
विवादित समझौते
टिप्पणी में कहा गया है कि तथ्य के विवादित प्रश्न थे क्योंकि चोकसी और उनकी पत्नी प्रीति ने दलील दी थी कि 25 जुलाई, 2013 और 13 अगस्त, 2013 के दो समझौते उनकी कम्पनी गीतांजलि ज्वेलरी रिटेल लिमिटेड (जीजेआरएल) पर बाध्यकारी नहीं थे, जो गीतांजलि जेम्स लिमिटेड (जीजीएल) की सहायक कम्पनी थी। पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता ने कहा है कि समझौते वैध और बाध्यकारी थे।