नई दिल्ली, 24 अक्टूबर। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने कोर्ट के प्रतीक और नई ‘न्याय की देवी’ की प्रतिमा में किए गए बदलावों पर कड़ा विरोध जताया है। उसका कहना है कि ‘न्याय की देवी’ की प्रतिमा में बदलाव से पहले एसोसिएशन से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया गया। यह जस्टिस एडमिनिस्ट्रेशन में बार एसोसिएशन की भूमिका को सरासर नजरअंदाज करने जैसा है।
SCBA ने पारित किया सर्वसम्मत प्रस्ताव
एससी बार एसोसिएशन ने इस बाबत उसके साथ विचार-विमर्श किए बगैर ‘न्याय की देवी’ की प्रतिमा और शीर्ष अदालत के प्रतीक चिह्न में किए गए ‘आमूलचूल बदलावों’ पर आपत्ति जताते हुए आज सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव भी पारित किया।
न्यायाधीशों के पुस्तकालय में स्थापित की गई है नई प्रतिमा
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के पुस्तकालय में ‘न्याय की देवी’ की छह फुट ऊंची नई प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसके एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार की जगह अब संविधान है। सफेद पारंपरिक पोशाक पहने ‘न्याय की देवी’ की नई प्रतिमा की आंखों पर पट्टी भी नहीं बंधी हुई है और सिर पर एक मुकुट है।
प्रस्तावित संग्रहालय पर भी जताई आपत्ति
SCBA के अध्यक्ष कपिल सिब्बल और कार्यकारी समिति के अन्य सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव में उस स्थान पर प्रस्तावित संग्रहालय पर भी आपत्ति जताई गई है, जहां उन्होंने बार के सदस्यों के लिए कैफे-लाउंज बनाने की मांग की थी।
बार एसोसिएशन के इस प्रस्ताव में कहा गया है, ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारी समिति ने पाया है कि हाल ही में न्यायालय ने बार से परामर्श किए बिना एकतरफा तरीके से अपने प्रतीक चिह्न और न्याय की देवी की प्रतिमा में कुछ आमूलचूल बदलाव बदलाव किए हैं। न्याय व्यवस्था में हम समान रूप से हिस्सेदार हैं, लेकिन इन बदलावों के प्रस्ताव के बारे में हमसे कभी बात नहीं की गई। हम इन बदलावों से जुड़े तर्क से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं।’ बार एसोसिएशन ने कहा कि वह उच्च सुरक्षा क्षेत्र में प्रस्तावित संग्रहालय का सर्वसम्मति से विरोध करता है तथा वहां एक पुस्तकालय और एक कैफे-लाउंज की मांग फिर दोहराता है।