बेंगलुरु, 18 फरवरी। कर्नाटक हाई कोर्ट में चल रहे हिजाब विवाद मामले में राज्य सरकार ने अपनी दलील पेश करते हुए कहा है कि इस्लाम में हिजाब अनिवार्य प्रथा नहीं है और शैक्षणिक संस्थाओं में इसके उपयोग को रोकना संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (आर्टिकल 25) के खिलाफ नहीं है। अब 21 मई को अगली सुनवाई होगी।
हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को राज्य सरकार की ओर से पेश हुए कर्नाटक के महाधिवक्ता (एजी) प्रभुलिंग नवदगी ने अदालत को बताया कि हिजाब पहनना इस्लाम का एक अनिवार्य धार्मिक हिस्सा नहीं है।
महाधिवक्ता का तर्क – 5 फरवरी का आदेश पूरी तरह से कानून सम्मत था
प्रभुलिंग ने यह भी तर्क दिया कि राज्य सरकार का गत पांच फरवरी का आदेश पूरी तरह से कानून सम्मत था और इस फैसले पर आपत्ति उठाने का कोई ठोस आधार नहीं बनता था। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि सरकारी आदेश में ‘एकता और समानता के अनुरूप’ पोशाकों को निर्धारित करने वाले हिस्से को और बेहतर तरीके से लिखा जा सकता था।
कोर्ट ने पूछा – क्या सरकार ने समय से पहले हिजाब पर रोक लगाने का आदेश दिया
कर्नाटक हाई कोर्ट ने पूछा था कि क्या सरकार ने समय से पहले हिजाब पर रोक लगाने का आदेश दिया? कोर्ट का कहना था – ‘एक तरफ आप (राज्य) कहते हैं कि उच्चस्तरीय कमेटी मामले की जांच कर रही है। दूसरी तरफ आप यह आदेश जारी कर देते हैं। क्या यह राज्य का विरोधाभासी रुख नहीं होगा? इसपर एजी ने कहा कि निश्चित रूप से नहीं।
सुनवाई के दौरान ही सीनियर एडवोकेट एएम डार ने हाई कोर्ट को बताया कि कोर्ट की आपत्ति को देखते हुए उन्होंने पांच छात्राओं की ओर से नई याचिका दायर की है। याचिका पर 21 फरवरी को सुनवाई होगी। गौरतलब है कि गत पांच फरवरी को कर्नाटक सरकार के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें छात्राओं को हिजाब या भगवा स्कार्फ पहनने से प्रतिबंधित किया गया था। मुस्लिम छात्राओं का तर्क था कि राज्य सरकार का यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है।