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श्रीलंकाई मंत्री थोंडामन बोले – ‘कच्चातिवु द्वीप को लेकर भारत ने कोई आधिकारिक बातचीत नहीं की’

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नई दिल्ली, 2 अप्रैल। कच्चातिवु द्वीप पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक ट्वीट को लेकर हंगामा खड़ा हो गया है, जिसमें उन्होंने एक आरटीआई जवाब के हवाले से की गई रिपोर्ट का जिक्र कर कांग्रेस और तमिलनाडु सरकार पर निशाना साधते हुए कह था कि कांग्रेस ने जान बूझकर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया। पीएम मोदी के इस बयान से भारत में मची राजनीतिक हलचल के बीच श्रीलंका के एक मंत्री ने कहा है कि भारत ने इस संबंध में श्रीलंका से कोई आधिकारिक बातचीत नहीं की है।

तमिलनाडु के भाजपा प्रमुख के. अन्नामलाई ने दावा किया है कि केंद्र सरकार द्वीप को फिर से वापस लेने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। लेकिन अन्नामलाई के दावे के उलट राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की कैबिनेट में शामिल तमिल मूल के मंत्री जीवन थोंडामन ने स्पष्ट रूप से कह दिया है ऐसी कोई बातचीत नहीं हो रही है और यदि होती है तो इसका जवाब दिया जाएगा।

अंग्रेजी दैनिक ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए एक इंटरव्यू में थोंडामन ने कहा, ‘जहां तक श्रीलंका की बात है, कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका की सीमा में पड़ता है। श्रीलंका के साथ नरेंद्र मोदी सरकार के रिश्ते अच्छे हैं। अब तक, कच्चातिवु द्वीप पर अधिकार को वापस लेने को लेकर भारत की तरफ से कोई आधिकारिक बातचीत नहीं की गई है। भारत ने अब तक ऐसा कोई आग्रह नहीं किया है। यदि ऐसी कोई बात सामने आती है तो विदेश मंत्रालय उसका जवाब देगा।’

प्रधानमंत्री के कांग्रेस पर हमले के बाद विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस की पिछली सरकारों पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की इंदिरा गांधी सरकार ने वर्ष 1974 में कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया और इस बात को छिपाकर रखा।

जयशंकर ने कहा कि कांग्रेस ने इस द्वीप को तुच्छ करार देते हुए इसके प्रति उदासीनता दिखाई। हालांकि, वह भाजपा नेता अन्नामलाई के उस दावे पर साफ-साफ कुछ भी कहने से बचते दिखे कि सरकार द्वीप को वापस लेने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। जयशंकर ने बस इतना कहा, ‘मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।’

श्रीलंकाई मंत्री ने कहा – सीमा नई सरकार की मर्जी से नहीं बदल सकती

एक अन्य श्रीलंकाई मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि देश की सीमा नई सरकार की मर्जी से नहीं बदल सकती। उन्होंने कहा, ‘चाहे ये सही हो या गलत, कच्चातिवु पहले श्रीलंका की सीमा में आ चुका है। एक बार जब सीमा तय हो जाती है, तब नई सरकार आकर इसमें बदलाव की मांग नहीं कर सकती है… लेकिन श्रीलंका की कैबिनेट में कच्चातिवु को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है। इस संबंध में भारत की तरफ से भी कोई बातचीत नहीं हुई है।’

उन्होंने आगे कहा, ‘यदि कच्चातिवु का मामला तमिल समुदाय के बारे में है तो तमिल सीमा के दोनों तरफ रहते हैं। यदि यह तमिल मछुआरों का मुद्दा है तो दोनों को जोड़कर देखना अनुचित और गलत है क्योंकि भारतीय मछुआरों का मुद्दा महज जाल का मुद्दा है, जिसे वो भारतीय समुद्री सीमा के बाहर इस्तेमाल करते हैं। यह अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून के हिसाब से गैर कानूनी है।’

श्रीलंकाई मंत्री न कहा, ‘जब पूरे समुद्री क्षेत्र में समुद्री संसाधनों का दोहन किया जा रहा है तो भारतीय तमिल मछुआरों के इन जाल का शिकार मुस्लिम या सिंहली मछुआरे नहीं बल्कि श्रीलंकाई तमिल मछुआरे ही हैं।’ उल्लेखनीय है कि भारत और श्रीलंका के बीच उच्च स्तर की आखिरी वार्ता 28 मार्च को नई दिल्ली में कच्चातिवु का मुद्दा उठने के ठीक तीन दिन पहले हुई थी।

अन्नामलाई ने कच्चातिवु को लेकर दायर की थी RTI

दरअसल, अन्नामलाई ने एक आरटीआई दायर की थी, जिसके जवाब में यह बात सामने आई कि 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार ने श्रीलंकाई सरकार के साथ एक समझौता कर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया था। बीते रविवार को इसे लेकर एक रिपोर्ट सामने आई, जिसे लेकर पीएम मोदी ने ट्वीट कर कांग्रेस पर निशाना साधा।

भाजपा के आरोपों को खारिज कर चुकी है कांग्रेस

हालांकि कांग्रेस ने भाजपा के इन आरोपों को खारिज कर दिया है। राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम का कहना है कि पीएम मोदी को 27 जनवरी, 2015 के उस आरटीआई जवाब का भी जिक्र करना चाहिए, जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर विदेश सचिव थे। उस दौरान यह स्पष्ट कहा गया था कि समझौते के बाद कच्चातिवु द्वीप अंतरराष्ट्रीय सीमा के श्रीलंकाई हिस्से में है।

समझौते के तहत श्रीलंका से छह लाख तमिल भारतीयों को वापस लाया गया था

वहीं, वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया है कि समझौते के तहत श्रीलंका से छह लाख तमिल भारतीयों को वापस लाया जा सका था। तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच स्थित कच्चातिवु द्वीप तमिलनाडु के रामेश्वरम से 25 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित है। इंदिरा गांधी की सरकार में 1974 में हुए एक समझौते के तहत यह श्रीलंका को मिल गया था और इसी से दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा तय हुई थी।

कच्चातिवु द्वीप तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच स्थित है, जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। 285 एकड़ में फैला यह छोटा द्वीप दिल्ली के लाल किले से थोड़ा ही बड़ा है। श्रीलंका के रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार कच्चातिवु द्वीप पर लगभग 4,500 लोग रहते हैं।

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