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सोनिया गांधी ने मोदी सरकार को घेरा, तिरंगे के लिए पॉलिएस्टर के बजाय खादी के इस्तेमाल पर जोर दिया

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नई दिल्ली, 20 अगस्त। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने मशीन-निर्मित पॉलिएस्टर झंडों के इस्तेमाल के लिए मंगलवार को मोदी सरकार की आलोचना की और तिरंगे के एकमात्र कपड़े के रूप में खादी को अपनाए जाने का आह्वान किया। सोनिया गांधी ने यह भी कहा कि खादी को राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में उसका उचित स्थान मिलना चाहिए।

सोनिया गांधी ने एक अंग्रेजी दैनिक अखबार में लिखे एक लेख में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस से पहले के सप्ताह में ‘हर घर तिरंगा’ अभियान के लिए नए सिरे से आह्वान किया जाना राष्ट्रीय ध्वज और देश के लिए इसके महत्व पर सामूहिक रूप से आत्मावोलकन करने का अवसर प्रदान करता है। सोनिया गांधी ने कहा कि उनका (मोदी का) राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान व्यक्त करना और एक ऐसे संगठन के प्रति निष्ठा रखना नैतिक रूप से दोहरापन है, जो इस ध्वज के प्रति उदासीन रहा है।

उन्होंने कहा कि मशीन-निर्मित, पॉलिएस्टर के झंडों को बड़े पैमाने पर अपनाया जा रहा है, जिसमें कच्चा माल अक्सर चीन से आयात किया जाता है। सोनिया ने इस बात का उल्लेख किया कि भारतीय ध्वज संहिता के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से राष्ट्रीय ध्वज को ‘‘हाथ से काते गए और हाथ से बुने गए ऊन/कपास/रेशम/ खादी के टुकड़े’’ से बनाया जाना आवश्यक है।‘‘

उन्होंने कहा कि खादी एक मोटा, लेकिन मजबूत कपड़ा है, जिसे महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आंदोलन के नेतृत्व में खुद काता और बुना था तथा इसका हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्मृति में एक विशेष अर्थ है। कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख ने कहा, ‘‘खादी हमारे गौरवशाली अतीत का प्रतीक है और भारतीय आधुनिकता और आर्थिक जीवन शक्ति का प्रतीक भी है।’’

सोनिया गांधी ने कहा, ‘‘ 2022 में हमारी आजादी की 75वीं वर्षगांठ के शुभ अवसर पर, सरकार ने ‘मशीन निर्मित…पॉलिएस्टर…बंटिंग’ को शामिल करने के लिए ध्वज संहिता में संशोधन किया। साथ ही पॉलिएस्टर के झंडे को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से छूट दी गई है। खादी के झंडे को कर के दायरे में रखा गया है।’’

उन्होंने अपने लेख में कहा कि सरकार बाजार को विनियमित करने में विफल रही है और अर्ध-मशीनीकृत चरखों से काती गई खादी को पारंपरिक हाथ से काती गई खादी के टैग के तहत धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। कांग्रेस नेता ने यह भी कहा, ‘‘यह हमारे खादी कातने वालों के लिए नुकसानदेह है, जिनकी कड़ी मेहनत के बावजूद मजदूरी प्रतिदिन 200-250 रुपये से अधिक नहीं है।’’