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सेक्युलर शब्द भारत में प्रारंगिक नही – डॉ. मनमोहन वैद्य

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अहमदाबाद/ नागपुर, 20 फरवरी । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि, हमारे देश में सेक्युलर शब्द बहुत प्रचलित है। लेकिन भारतीय सभ्यता अपने आप में सभी धर्मो को समान रूप से सम्मान देती है। नतीजतन रोम के थियोक्रॅटिक स्टेट (धर्मसत्ता) के कार्यकाल मे उत्पन्न हुवा यह शब्द भारत में प्रारंगिक नही है।

गुजरात के अहमदाबाद में स्थित माधव स्मृति न्यास द्वारा “धर्मचक्र प्रवर्तनाय” विषय पर आयोजित दो दिवसीय व्याखान के समापन कार्यक्रम में मार्गदर्शन करते हुए डॉ. वैद्य ने धर्म और सेक्युलर इन दो शब्दो पर अपने विचार रखे। सहसरकार्यवाह ने कहा कि, सूरत के केटी शाह ने संसद में यह बिल लाया था कि, भारत को “सेक्युलर सोशॅलिस्ट रिपब्लिक” कहा जाए। लेकिन उस समय के विद्वानो ने शाह का यह प्रस्तव नामंजूर किया था। तत्कालिन विद्वानो का यह मानना था कि, भारतीय सभ्यता में इस शब्द कि जरूरत नही है। क्यो कि, भारतीय समाज और सभ्यता सभी को स्वीकार करती है। सेक्युलर शब्द कि उत्पत्ती पर रौशनी डालते हुए डॉ. वैद्य ने बताया कि, कबिलो में बटा युरोपियन समाज सबसे पहले तिसरी शताब्दी में रोमन साम्राज्य के विस्तार के साथ एक छत के निचे आया। इसी के साथ ईसाइ धर्म का भी विस्तार हुवा। जेरूशलम से चलनेवाली पोप कि सत्ता खिसक कर वैटिकन में चली गई। वही राजा के आश्रय कि वजह से बिशप का महत्त्व बढ गया था। छटी शताब्दी में रोमन साम्राज्य समाप्त होने के बाद समाज को जोडे रखने के लिए सत्ता पोप के हाथो में आई। वैद्य ने कहा कि, पोप द्वारा चलाए जाने वाले इस राज्य को थियोक्रटिक स्टेट कहा जाता था। यह राज्य लगभग एक हजार वर्षो तक बरकरार रहा। सहसरकार्यवाह ने बताया कि, तत्कालिन रोमन समाज के लोग भौतिक चिजो को धर्म सत्ता से दूर रखना चाहते थे। नतिजतन धर्म से जुडी व्यवस्था के लिए रिलिजीन और अन्य चिजो के लिए सेक्युलर शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा। सेक्युलर शब्द पर अधिक रौशनी डालते हुए वैद्य ने कहा कि, दुनिया में कई ऐसे शब्द होते है जिनकी अवधारणा के पिछे स्थानिय सभ्यता और भूगोल अंतर्निहीत होता है। वैद्य ने बताया कि, अंग्रेजी भाषा में दुध, दही, छाछ, मख्खन के लिए पर्यायी शब्द है। लेकिन मख्खन से बनने वाले घी के लिए कोई शब्द नही है। नतीजतन अंग्रेजी भाष में उसे घी ही कहा जाता है।केवल भारत में ही मख्खन से घी निकाल कर उपयोग किया जाता है। इसलिए यह शब्द भारत और यहा कि भाषाओ में ही उपलब्ध है। बतौर वैद्य ठीक उसी तरह सेक्युलर यह विदेशी अवधारणा से उत्पन्न हुवा शब्द है और भारत मे प्रासंगिक नही है।

सेक्युलर शब्द के भारतीय इतिहास कि जानकारी साझा करते हुए डॉ. वैद्य ने बताया कि, भारत में आपातकाल के दौरान 1976 में बिना चर्चा के भारतीय संविधान में 42 वा संशोधन किया गया। इस संशोधन के तहत संविधान के प्रियांबल में बेवजह सेक्युलर शब्द जोडा गया। वैद्य ने कहा कि, संविधान के जानकार कहते है कि, संविधान के प्रियांबल में कोई बदलाव नही हो सकता। इसके बावजूद संविधान के प्रियांबल में सेक्युलर शब्द अनावश्यक रूप से जोडा गया। वैद्य ने कहा कि, सेक्युलर शब्द को भारत मे जिस तरह से परिभाषीत किया गया वह अपने आप में विचित्र है। वैद्य ने कई उदाहरण देते हुए बताया कि, हिंदु धर्म और आस्था कि बात करना हमारे देश में सांप्रदायिक माना जाता है। अन्य धर्मो के लोगो ने मजार पर चादर चढाना सेक्युलर है। लेकिन मंदिर में घंटी बजाना सांप्रदायिकता कहलाता है। बतौर वैद्य भारतीय सेक्युलॅरिझम के तहत आप ओवैसी के साथ मंच साझा कर सकते है। लेकिन, यदी योगी आदित्यनाथ के साथ मंच पर बैठे तो आप को सांप्रदायिक कहा जा सकता है। वैद्य ने कहा कि, दुनिया के किसी भी मुस्लीम देश में हजयात्रा के लिए सबसिडी नही दी जाती। लेकिन सेक्युलर कहलाने वाले भारत में हज को सबसीडी मिलती है। वैद्य ने बताया कि, प्रधानमंत्री रहते हुए डॉ. मनमोहन सिंग ने कहा था कि, भारत के संसाधनो पर पहला हक अल्पसख्याक समुदाय का है। वैद्य ने कहा कि, प्रधानमंत्री का यह वाक्य अपने-आप मे सांप्रदायिक था। लेकिन सेक्युलर देश में किसी ने उस वाक्य पर आपत्ती दर्ज नही कराई।

धर्म कि परिभाषा पर अपने विचार रखते हुए वैद्य ने कहा कि, “धारणात् धर्म इत्याहुः धर्मो धारयति प्रजाः। यः स्यात् धारणसंयुक्तः स धर्म इति निश्चयः।।” ऐसा संस्कृत भाषा में सुभाषित है। इसका अर्थ होता है कि, ‘जो धारण करता है, एकत्र करता है, उसे ”धर्म” कहते हैं। उपासना और अध्यात्म धर्म से जुडा होता है। नतीजतन कई लोग उपासना पद्धती को धर्म मान लेते है। लेकिन धर्म कि परिभाषा इतनी सिमीत नही है। वैद्य ने कहा कि, हमारे देश कि संसद में “धर्मचक्र प्रवर्तनाय” लिखा हुवा है। व्यक्ती से समाज को जोडने का नाम धर्म है। हमारे राष्ट्रध्वज में जो चक्र है उसे लोग अशोक चक्र कहते है। वैद्य ने बताया कि, वास्तव में यह धर्मचक्र है जिसे सम्राट अशोक ने स्विकारा था। समाज में दुसरो के प्रति योगदान देना मै से हम तक कि यात्रा का नाम धर्म है। वैद्य ने आवाहन किया कि, धर्म के इस विस्तारित अर्थ को ध्यान में रख कर हमें धर्मचक्र को गतिमान रखने में योगदान देना चाहिए।