नई दिल्ली/मुंबई, 11 मई। महाराष्ट्र सरकार पर आशंकित खतरा गुरुवार को टल गया, जब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने उद्धव ठाकरे गुट और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे गुट की विभिन्न याचिकाओं पर फैसला सुनाने के साथ इसे बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि महाराष्ट्र के 16 विधायकों की योग्यता का मुदा अब बड़ी बेंच देखेगी।
शीर्ष अदालत ने कहा – 2016 में नबाम रेबिया मामले में फैसला सही नहीं था
महाराष्ट्र के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने 2016 का नबाम रेबिया मामले का, जिसमें कहा गया था कि स्पीकर को अयोग्य ठहराने की कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है, जिक्र करते हुए कहा कि जब उनके निष्कासन का प्रस्ताव लंबित है तो इस केस में एक बड़ी पीठ के संदर्भ की भी आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि 2016 का फैसला सही नहीं था। इसमें कहा गया था कि डिप्टी स्पीकर या स्पीकर के खिलाफ अयोग्यता का मामला है तो उसे कोई फैसला लेने का अधिकार नहीं होगा।
महाराष्ट्र स्पीकर के फैसले को भी गलत ठहराया
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मामले को बड़ी बेंच के पास भेजते हुए तीखी टिप्पणी भी की है। कोर्ट ने कहा कि स्पीकर को दो गुट बनने की जानकारी थी। भरत गोगावले को चीफ ह्विप बनाने का स्पीकर का फैसला गलत था। स्पीकर को इस पर जांच करके फैसला लेना चाहिए था। स्पीकर को सिर्फ पार्टी ह्विप को मान्यता देनी चाहिए। उन्होंने सही ह्विप को जानने की कोशिश नहीं की।
राज्यपाल को लेकर भी तीखी टिप्पणी कर चुकी है शीर्ष अदालत
इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल को लेकर भी ऐसे ही तीखी टिप्पणी करते हुए कई सवाल किए थे। अदालत ने पूछा था कि क्या किसी राजनीतिक दल में आंतरिक विद्रोह को आधार मानकर राज्यपाल फ्लोर टेस्ट करा सकते हैं? क्या विधानसभा के सदन को बुलाते समय राज्यपाल को इस बात का अंदाजा नहीं था कि इससे तख्तापलट हो सकता है?
हालांकि आज फैसले के पहले उद्धव ठाकरे गुट के नेता संजय राउत ने कहा था, ‘मैं महाविकास अघाड़ी का नेता और शिवसेना का सांसद हूं और मुझे लगता है कि सरकार को खतरा है। अगर 16 विधायकों की सदस्यता निरस्त होगी तो बचे हुए 24 की भी निरस्त होगी और सरकार तुरंत गिर जाएगी।’
गौरतलब है कि, बीते वर्ष शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे से बगावत करके भाजपा के सहयोग से सरकार बना ली थी। राज्यपाल ने उनकी सरकार को मान्यता देकर शपथ दिलाई थी। वहीं मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो इसे संविधान पीठ में ट्रांसफर किया गया। पीठ में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के आखिरी दिन यानी गत 16 मार्च को इस बात पर आश्चर्य जताया था कि कोर्ट उद्धव सरकार की बहाली कैसे कर सकता है क्योंकि उद्धव ने फ्लोर टेस्ट के पहले ही इस्तीफा दे दिया था। उद्धव ने अपनी याचिका में मांग की थी कि राज्यपाल का जून, 2022 का आदेश रद किया जाए, जिसमें उद्धव से सदन में बहुमत साबित करने को कहा गया था। इस पर उद्धव गुट ने कहा कि यथा स्थिति (स्टेटस को) बहाल की जाए, यानी उद्धव सरकार बहाल की जाए जैसा कोर्ट ने 2016 में अरुणाचल प्रदेश में नबाम तुकी सरकार की बहाली के ऑर्डर में किया था।