नई दिल्ली, 18 नवंबर। उच्चतम न्यायालय ने पॉक्सो अधिनियम के तहत दुष्कर्म मामले में शारीरिक स्पर्श (स्किन टू स्किन टच) से सम्बद्ध बॉम्बे उच्च न्यायालय के विवादित फैसले को रद कर दिया है। उच्च न्यायालय ने पॉक्सो अधिनियम के अनुच्छेद-7 के अंतर्गत स्किन टू स्किन टच को आवश्यक शर्त माना था।
ऐसी घटनाओं में शारीरिक स्पर्श प्रासंगिक नहीं
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट व न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी की खंडपीठ ने गुरुवार को अटार्नी जनरल और राष्ट्रीय महिला आयोग की अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई के दौरान कहा कि नीयत ही अपराध की श्रेणी में आती है। ऐसी घटनाओं में शारीरिक स्पर्श प्रासंगिक नहीं है।
कानून की अप्रसांगिक व्याख्या से विधायिका के प्रयास निरर्थक हो जाएंगे
खंडपीठ का कहना था कि कानून को उसकी मूल प्रासंगकिता की दृष्टि से परिभाषित किया जाना चाहिए। उसे बचाव के हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं होने देना चाहिए। शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि कानून की अप्रसांगिक व्याख्या से विधायिका के प्रयास निरर्थक हो जाएंगे।
शीर्ष अदालत से दोषी को 3 वर्ष के कठोर कारावास की सजा
न्यायमूर्ति रवींद्र भट्ट ने इसी संदर्भ में आज एक अलग फैसला दिया। अपने फैसले में शीर्ष न्यायालय ने कहा कि इस कानून के बारे में जब विधायिका ने स्पष्ट इरादा व्यक्त कर दिया है तो अदालतों को इस बारे में किसी दुविधा में नहीं पड़ना चाहिए। बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए शीर्ष न्यायालय ने दोषी को तीन वर्ष के कठोर कारावास और एक महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई है।
गौरतलब है कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि स्किन टू स्किन कान्टैक्ट के बिना नाबालिग के निजी अंगों को टटोलना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। हाई कोर्ट ने इस आधार पर दोषी को बरी कर दिया था। सत्र अदालत ने व्यक्ति को पॉक्सो अधिनियम और आईपीसी की धारा 354 के तहत अपराधों के लिए तीन वर्ष के कारावास की सजा सुनाई थी।