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रामलला की प्राण प्रतिष्ठा : भावुक हुईं साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती, एक-दूसरे को गले लगाया  

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अयोध्या, 22 दिसम्बर। अयोध्या स्थित राम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ ही राम भक्तों का सदियों पुराना इंतजार भी खत्म हो गया। दुनिया भर में मौजूद करोड़ों रामभक्त इस क्षण का जश्न मना रहे हैं। इस बीच अयोध्या में भी एक भावुक कर देने वाला क्षण आया, जब श्रीराम जन्मभूमि के लिए वर्षों चले आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वालीं दो फायरब्रांड नेताओं – साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती राम मंदिर का इतिहास लिखे जाने के वक्त एक-दूसरे के गले लगकर भावुक हो गईं।

सर्वविदित है कि राम मंदिर जन्मभूमि के लिए लाखों राम भक्तों ने जन्मभूमि संघर्ष की लौ को जीवित रखा। साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती राम जन्मभूमि आंदोलन का नेतृत्व करने और उसे सशक्त बनाने वाले शीर्ष नेताओं में से एक रही हैं। दोनों फायरब्रांड नेताओं ने समारोह के दौरान एक दूसरे के गले लगाया। उमा भारती को गले लगाते वक्त साध्वी ऋतंभरा भावुक हो गईं। इस वक्त दोनों भी नेता अपने आंसू नहीं रोक पाए। इस पल की तस्वीर तुरंत ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। इस दौरान साध्वी निरंजन ज्योति दोनों नेताओं को ढाढस बंधाती रहीं।

आंदोलन में उमा भारती-साध्वी ऋतंभरा का बड़ा योगदान

देखा जाए तो राम मंदिर आंदोलन में उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा का अहम योगदान रहा है। छह दिसम्बर,1992 को जब अयोध्या में लाखों कारसेवक पहुंचे थे तो उनके बीच साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती के भाषणों का प्रभाव था। जब लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल जैसे दिग्गज नेता कारसेवकों को नियंत्रित नहीं कर सके। उस समय उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा ने मंच से कारसेवकों को कंट्रोल किया था।

उमा भारती अपने भाषणों से कारसेवकों पर प्रभाव छोड़ती थीं। 1992 की कारसेवा में उमा भारती ने दो नारा दिया। एक नारा था, ‘राम नाम सत्य है, बाबरी मस्जिद ध्वस्त है’। वहीं, दूसरा नारा था, ‘एक धक्का और दो, बाबरी मस्जिद तोड़ दो’। ये नारे कारसेवकों के प्राण वायु बन गए थे।

आंदोलन के दौरान साध्वी ऋतंभरा को प्रखर वक्ता माना जाता था

कभी फायरब्रांड से पहचान बनाने वाली साध्वी ऋतंभरा का जन्म लुधियाना के दोराहा में हुआ था। पहले उनका नाम निशा था। लेकिन जब वह हरिद्वार के संत स्वामी परमानंद गिरी की शिष्या बनीं तो उन्हें ऋतंभरा नाम से पहचान मिली। पांच दशकों तक चले राम मंदिर आंदोलन की लड़ाई में साध्वी ऋतंभरा भी सुर्खियों में छाई रहीं। आंदोलन के दौरान उन्हें फायरब्रांड नेता और प्रखर वक्ता माना जाता था। इनके भाषण 90 के दशक में काफी लोकप्रिय हुए थे।

साध्वी ऋतंभरा कभी सक्रिय राजनीति में नहीं आईं

हालांकि साध्वी ऋतंभरा कभी सक्रिय राजनीति में नहीं आईं। वह अनाथ बच्चों की सेवा में चली गई। आंदोलन के बाद ऋतंभरा ने वृंदावन में अनाथ बच्चों और बुजुर्गों के वात्सल्य ग्राम की स्थापना की। वह अनाथ बच्चों और बुजुर्गों को एक साथ लाकर परिवार के संकल्पना के साथ सेवा में जुटी रहीं। वात्सल्य ग्राम के बच्चे उन्हें दीदी मां के नाम से पुकारते हैं।

उमा भारती का नारा था – राम-लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे

वहीं उमा भारती का जन्म तीन मई, 1959 को मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ के एक लोधी राजपूत परिवार में हुआ था। उनके समर्थक उन्हें दीदी के संबोधन से भी बुलाते हैं। वह हिन्दू महाकाव्यों की अच्छी जानकार भी हैं। साध्वी ऋतंभरा के साथ मिलकर अयोध्या मसले पर उन्होंने आंदोलन शुरू किया। उमा भारती ने इस आंदोलन को एक सशक्त नारा भी दिया – ‘राम-लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’।

राजनीतिज्ञ और हिन्दू धर्म प्रचारक होने के अलावा वे एक समाजसेवी के रूप में भी पहचानी जाती हैं। वाजपेयी सरकार में उमा भारती विभिन्न मंत्रालयों जैसे मानव संसाधन विभाग, पर्यटन, खेल और युवा मामले, कोयला और खाद्यान्न मंत्रालय का पदभार संभाल चुकी हैं।

उमा भारती ने राम जन्मभूमि को बचाने के लिए कई प्रभावकारी कदम उठाए। उन्होंने भोपाल से लेकर अयोध्या तक की कठिन पद-यात्रा भी की थी। यही नहीं जुलाई, 2007 में रामसेतु को बचाने के लिए सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट के विरोध में पांच दिन की भूख-हड़ताल भी की थी। वह मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं।

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