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सीमा विवाद पर बोले जयशंकर – एलएसी पर समझौते ने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए अन्य रास्ते भी खोले

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ब्रिस्बन, 3 नवम्बर। विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत और चीनी सैनिकों की वापसी को स्वागत योग्य कदम करार देते हुए कहा है कि इसने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए अन्य रास्ते भी खोल दिए हैं।

ऑस्ट्रेलियाई शहर ब्रिस्बन में भारतीय समुदाय के लोगों से की बातचीत

ऑस्ट्रेलियाई शहर ब्रिस्बन में भारतीय समुदाय के लोगों से बातचीत में जयशंकर ने कहा, ‘एलएसी में चीन की सेनाओं के पीछे हटने से आपसी संबंधों में कुछ प्रगति हुई। अब सेनाओं के पीछे हटने के बाद यह देखना होगा कि हम किस दिशा में जाते हैं। लेकिन हमारा मानना ​​है कि पीछे हटना एक स्वागत योग्य कदम है, इससे आगे की संभावना खुल जाती है कि अन्य कदम भी उठाए जा सकते हैं।’

‘अभी गतिरोध के अन्य पहलू भी हैं, जिन्हें सुलझाना बाकी

जयशंकर ने कहा कि सैनिकों की वापसी केवल ‘एक मुद्दे का सुलझना’ है और अभी गतिरोध के अन्य पहलू भी हैं, जिन्हें अब भी सुलझाना बाकी है। उन्होंने कहा, ‘सच्चाई यह है कि एलएसी पर बहुत बड़ी संख्या में चीनी सैनिक तैनात थे, जो 2020 से पहले वहां नहीं थे और हमने बदले में जवाबी तैनाती की। गतिरोध के दौरान भारत और चीन ने एलएसी के लद्दाख सेक्टर में 50000 से अधिक सैनिकों को तैनात किया था, जिससे द्विपक्षीय संबंध 1962 के सीमा युद्ध के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए थे। भारत ने चीन के खिलाफ कई अन्य सख्त कदम भी उठाए थे, जिनमें चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाना और चीनी नागरिकों के लिए वीजा और चीनी पक्ष से निवेश को प्रतिबंधित या कम करना शामिल था।’

जयशंकर ने यूरोप और पश्चिम एशिया में चल रही भीषण जंग पर भी बात की। उन्होंने कहा कि भारत कूटनीति के जरिए यूक्रेन-रूस और इजराइल-हमास संघर्ष को रोकने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस कोशिश में और देशों को आगे आना चाहिए, क्योंकि युद्ध ने ग्लोबल वर्ल्ड के 125 देशों के संकट और दर्द को बढ़ा दिया है।

रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास युद्ध के व्यापक परिणामों ने चिंता बढ़ा दी है

डॉ. जयशंकर ने कहा, ‘रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास युद्ध के व्यापक परिणामों ने चिंता बढ़ा दी है। हम अलग-अलग कोशिशों में इस युद्ध को समाप्त करने के प्रयास में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए कूटनीतिक प्रयास तेज करने होंगे क्योंकि इस महायुद्ध ने 125 देशों के लिए संकट और दर्द बढ़ा दिया है। इस महायुद्ध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार प्रयास कर रहे हैं।’

महायुद्ध के शांतिपूर्ण समाधान के लिए पीएम मोदी लगातार प्रयास कर रहे

जयशंकर ने कहा कि संकट के शांतिपूर्ण समाधान के ही प्रयास में पीएम मोदी ने जुलाई में रूस और अगस्त में यूक्रेन की यात्रा की थी। उन्होंने जून में और फिर सितम्बर में यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की से भी मुलाकात की और अक्टूबर में रूसी शहर कजान में ब्रिक्स समिट के दौरान राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिले। दोनों नेताओं से मुलाकात में पीएम मोदी ने युद्ध रोकने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी स्थिति है, जिसके लिए कुछ हद तक कूटनीति की आवश्यकता है और हम ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं।

युद्ध रोकने के लिए बाकी दुनिया के देशों से भी आगे आने की अपील

विदेश मंत्री ने कहा, ‘हमें लगता है कि बाकी दुनिया को भी इस युद्ध को रोकने के लिए आगे आना चाहिए। उन्हें अपने हाथ यह कहकर खड़े नहीं करने चाहिए कि यह नहीं हो पाएगा। हम दुनिया के बाकी देशो से भी आह्वान करते हैं कि आइए, इसे मिलकर रोकें।’ जयशंकर ने स्वीकार किया कि जब भारत ने अपने प्रयास शुरू किए थे तो दुनिया के बाकी देशों को संदेह था कि भारत कुछ कर पाएगा, लेकिन आज उन देशों में एक समझ विकसित हो गई है, खासकर पश्चिमी देशों के बीच।

ईरान और इजराइल के बीच एक-दूसरे से सीधा संवाद जरूरी

जयशंकर ने आगे इजराइल के साथ हमास, ईरान और लेबनान युद्ध पर भी बात की। उन्होंने कहा, ‘पश्चिम एशिया में स्थिति अलग है, क्योंकि पहला प्रयास इजराइल-हमास युद्ध को रोकने पर केंद्रित है। यहां एक सबसे बड़ी कमी ईरान और इजराइल का एक-दूसरे से सीधा संवाद न हो पाना है। यदि वे उस अंतर को कम कर देते हैं या हटा देते हैं, तो हम युद्ध रोकने के प्रयास करने वालों में एक होंगे।’

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