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भारतीय रिजर्व बैंक अब UPI आधारित फंड ट्रांसफर पर शुल्क लगाने की योजना बना रहा, आमजन से मांगी राय  

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नई दिल्ली, 18 अगस्त। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अब डिजिटल पेमेंट प्रणाली यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) आधारित फंड ट्रांसपर पर शुल्क लगाने पर विचार कर रहा है। केंद्रीय बैंक ने इस बाबत जनता से भी राय मांगी है।

वस्तुतः आरबीआई भुगतान प्रणालियों में अपने बड़े निवेश और परिचालन व्यय की वसूली की संभावना की जांच कर रहा है। इसमें प्रति डेबिट कार्ड लेनदेन के लिए इंटरचेंज को विनियमित करना और प्रति लेनदेन शुल्क अनिवार्य करना और यूपीआई आधारित फंड ट्रांसफर पर शुल्क लगाना शामिल है। केंद्रीय बैंक ने अपने ‘भुगतान प्रणाली में शुल्क पर चर्चा पत्र’ में उपरोक्त विषयों के अलावा अन्य चीजों पर सार्वजनिक टिप्पणियां मांगी हैं।

चर्चा पत्र में कहा गया है कि ऑपरेटर के रूप में, आरबीआई को आरटीजीएस में अपने बड़े निवेश और परिचालन व्यय की लागत की वसूली के लिए उचित ठहराया जा सकता है क्योंकि इसमें सार्वजनिक धन का व्यय शामिल है। इसके अलावा, रीयल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) में आरबीआई द्वारा लगाए गए शुल्क कमाई के साधन में शामिल नहीं हैं।

परिपत्र में कहा गया है, ‘आरटीजीएस मुख्य रूप से बड़े मूल्य के लेनदेन के लिए उपयोग की जाने वाली प्रणाली है और इसका उपयोग मुख्य रूप से बैंकों और बड़े संस्थानों/व्यापारियों द्वारा वास्तविक समय के निबटान की सुविधा के लिए किया जाता है। क्या इस तरह की प्रणाली के, जिसमें सदस्य के रूप में संस्थान हैं, लिए आरबीआई को मुफ्त लेनदेन प्रदान करने की आवश्यकता है?’

राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (एनईएफटी) के संचालक के रूप में केंद्रीय बैंक ने बुनियादी ढांचे को लागू करने और इसे संचालित करने के लिए निवेश किया है। हालांकि आरबीआई को एनईएफटी के संचालन में लाभ के उद्देश्य से निर्देशित नहीं किया जा सकता और उचित लागत की वसूली को उचित ठहराया जा सकता है, जैसा कि चर्चा पत्र में उल्लिखित है।

गौरतलब है कि फंड ट्रांसफर सिस्टम के रूप में यूपीआई फंड की रीयल-टाइम मूवमेंट को सक्षम बनाता है। एक मर्चेंट भुगतान प्रणाली के रूप में यूपीआई कार्ड सेटलमेंट के लिए टी+एन सेटलमेंट चक्र की तुलना में रीयल-टाइम सेटलमेंट की सुविधा भी देता है।

 

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