रायपुर, 23 दिसम्बर। भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित ख्यातिनाम साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार शाम यहां निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे। उनके पुत्र शाश्वत शुक्ल ने यह जानकारी दी।
शाश्वत शुक्ल ने बताया कि सांस लेने में तकलीफ होने के बाद उनके पिता को गत दो दिसम्बर को रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था। आज शाम 4.48 बजे में उन्होंने अंतिम सांस ली। शुक्ल के परिवार में उनकी पत्नी, बेटा शाश्वत और एक बेटी है। शाश्वत ने बताया कि उनके पिता के अंतिम संस्कार के संबंध में जल्द ही जानकारी दी जाएगी।
‘हिन्दी साहित्य जगत में अपने अमूल्य योगदान के लिए वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे’
इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विनोद कुमार शुक्ल के निधन पर शोक व्यक्त किया है। पीएम मोदी ने एक्स पोस्ट में लिखा, ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। हिन्दी साहित्य जगत में अपने अमूल्य योगदान के लिए वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति।’
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक विनोद कुमार शुक्ल जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। हिन्दी साहित्य जगत में अपने अमूल्य योगदान के लिए वे हमेशा स्मरणीय रहेंगे। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति।
— Narendra Modi (@narendramodi) December 23, 2025
पीएम मोदी ने छत्तीसगढ़ के पिछले दौरे में शुक्ल से बात की थी
विनोद शुक्ल को इसके पूर्व अक्टूबर माह में सांस लेने में हो रही तकलीफ के बाद रायपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तबीयत में सुधार होने के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी, तब से वह घर पर ही इलाज करा रहे थे। एक नवम्बर को जब प्रधानमंत्री मोदी ने छत्तीसगढ़ का दौरा किया था, तब उन्होंने शुक्ल और उनके परिवार से बात की थी तथा उनके स्वास्थ्य और कुशलक्षेम के बारे में जानकारी ली थी।
59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किए गए थे
‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘एक चुप्पी जगह’ जैसे उपन्यासों के रचयिता विनोद कुमार शुक्ल को 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 21 नवम्बर को शुक्ल को उनके रायपुर स्थित निवास पर आयोजित एक समारोह में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
अत्यंत धीमे बोलने वाले रचनाकार के साहित्य की आवाज दूर तक सुनाई देती थी
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में एक जनवरी 1937 को जन्मे विनोद कुमार शुक्ल हिन्दी साहित्य के ऐसे रचनाकार थे, जो बहुत धीमे बोलते थे, लेकिन साहित्य की दुनिया में उनकी आवाज बहुत दूर तक सुनाई देती थी। उन्होंने मध्यमवर्गीय, साधारण और लगभग अनदेखे रह जाने वाले जीवन को शब्द देते हुए हिंदी में एक बिल्कुल अलग तरह की संवेदनशील और जादुई दुनिया रची है।
उपन्यास ‘नौकर की कमीज‘ ने हिन्दी कथा-साहित्य में एक नया मोड़ दिया
उनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जय हिन्द’ 1971 में आया और वहीं से उनकी विशिष्ट भाषिक बनावट, चुप्पी और भीतर तक उतरती कोमल संवेदनाएं हिंदी कविता में दर्ज होने लगीं। उनके उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ (1979) ने हिन्दी कथा-साहित्य में एक नया मोड़ दिया, जिस पर मणि कौल ने फिल्म भी बनाई है।
ज्ञानपीठ के अलावा कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था
शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्का के अलावा साहित्य अकादमी पुरस्कार, गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप, रज़ा पुरस्कार, शिखर सम्मान, राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान, हिन्दी गौरव सम्मान और 2023 में पैन-नाबोकोव जैसे पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था।

