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आजम खान को सुप्रीम कोर्ट से राहत : नफरती भाषण मामले में निचली अदालत के आदेश पर रोक

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नई दिल्ली, 23 अगस्त। उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालत के उस आदेश पर बुधवार को अंतरिम रोक लगा दी, जिसके तहत समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता और यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री मो. आजम खान को 2007 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती के खिलाफ कथित तौर पर नफरती भाषण देने और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने के मामले में आवाज का नमूना देने का निर्देश दिया गया था। आजम की आवाज का नमूना 2007 में रामपुर के टांडा इलाके में एक जनसभा में उनके द्वारा दिए गए भाषण से मिलान के लिए मांगा गया था। इस भाषण को एक सीडी में रिकॉर्ड किया गया था।

न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति पीके मिश्रा की पीठ ने इस मामले में आजम खान की ओर से दायर याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार और शिकायतकर्ता को नोटिस जारी की। पीठ ने कहा, ‘प्रतिवादी को नोटिस जारी करें। इस बीच, निचली अदालत के 29 अक्टूबर, 2022 के उस आदेश पर अंतरिम रोक रहेगी, जिसे उच्च न्यायालय ने 25 जुलाई, 2023 को बरकरार रखा था।’

हाई कोर्ट ने रामपुर की अदालत का फैसला बरकरार रखा था

वरिष्ठ सपा नेता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 25 जुलाई के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था। उच्च न्यायालय ने आजम की याचिका का निबटारा करते हुए मामले में रामपुर की अदालत का फैसला बरकरार रखा था।

धीरज कुमार शील ने 2007 में आजम के खिलाफ दर्ज कराई थी शिकायत

धीरज कुमार शील नाम के एक व्यक्ति ने 2007 में आजम खान के खिलाफ टांडा पुलिस थाने में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। शील ने सपा नेता पर नफरत भरा भाषण देने और बसपा अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था।

रामपुर में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना) और 171-जी (चुनाव के संबंध में गलत बयान देना) के तहत मामला दर्ज किया गया था। पुलिस ने आजम के खिलाफ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की प्रासंगिक धाराएं भी लगाई थीं।

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