कोलंबो, 12 मई। यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के नेता रानिल विक्रमसिंघे ने गुरुवार को इतिहास के सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। कई बार प्रधानमंत्री रह चुके 73 वर्षीय विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने पद की शपथ दिलाई।
225 सदस्यीय संसद में यूएनपी के पास सिर्फ एक सांसद
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के सांसदों का समर्थन हासिल करने के बाद विक्रमसिंघे ने प्रधानमंत्री का पद स्वीकार किया। श्रीलंका की 225 सदस्यीय संसद में विक्रमसिंघे की यूएनपी के पास फिलहाल केवल एक सीट है।
विक्रमसिंघे को अक्टूबर, 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने प्रधानमंत्री
उल्लेखनीय है कि श्रीलंका आजादी के बाद से सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, जहां भोजन और ईंधन की कमी, बढ़ती कीमतों और बिजली कटौती से बड़ी संख्या में नागरिक आक्रोशित हैं और यही वजह है कि सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
सभी दलों ने बहुमत साबित करने के लिए विक्रमसिंघे के प्रति समर्थन जताया
प्राप्त जानकारी के अनुसार रानिल विक्रमसिंघे की सरकार छह महीने चल सकती है। सूत्रों के अनुसार सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी), विपक्षी समगी जन बालावेगाया (एसजेबी) के एक धड़े और अन्य कई दलों ने संसद में विक्रमसिंघे को बहुमत साबित करने के लिए अपना समर्थन जताया है।
देश की सबसे पुरानी पार्टी यूएनपी 2020 में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी और यूएनपी के मजबूत गढ़ रहे कोलंबो से चुनाव लड़ने वाले विक्रमसिंघे भी हार गए थे। बाद में वह सकल राष्ट्रीय मतों के आधार पर यूएनपी को आवंटित राष्ट्रीय सूची के माध्यम से संसद पहुंच सके। उनके साथी रहे सजीत प्रेमदासा ने उनसे अलग होकर अलग दल एसजेबी बना लिया जो मुख्य विपक्षी दल बन गया।
विक्रमसिंघे की अर्थव्यवस्था संभालने वाले नेता के तौर पर स्वीकार्यता
विक्रमसिंघे की दूरदृष्टि वाली नीतियों के साथ अर्थव्यवस्था संभालने वाले नेता के तौर पर स्वीकार्यता है। उन्हें श्रीलंका का ऐसा राजनेता माना जाता है, जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी जुटा सकते हैं। राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने बुधवार को देर रात राष्ट्र के नाम अपने टेलीविजन संदेश में पद छोड़ने से इनकार किया था, लेकिन इस सप्ताह एक नए प्रधानमंत्री और युवा मंत्रिमंडल के गठन का वादा किया था।