अयोध्या, 18 जनवरी। अयोध्या स्थित राम मंदिर में प्रस्तावित रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर पूरा देश राममय हो उठा है। गत मंगलवार (16 जनवरी) से जारी छह दिवसीय अनुष्ठान के बीच रामभक्तों को 22 जनवरी का बेसब्री से इंतजार है, जब रामलला के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होनी है।
इस बीच अनुष्ठान के तीसरे दिन गुरुवार को राम मंदिर में रामलला गर्भगृह में विराजमान हो गए हैं। गणेश अम्बिका पूजन के साथ दिन का अनुष्ठान शुरू हुआ और लगभग चार घंटे तक एक के बाद एक कई पूजन के बीच पूरे विधि-विधान के साथ गर्भगृह में मूर्ति की स्थापना की गई। इस दौरान मूर्तिकार योगिराज और कई संत मौजूद थे। अब 22 जनवरी (सोमवार) को प्राण प्रतिष्ठा होनी है। फिलहाल, रामलला की मूर्ति पूरी तरीके से ढकी हुई है।
तीसरे दिन के अनुष्ठान में गणेश अम्बिका पूजन, वरुण पूजन, चतुर्वेदो पुण्याह वाचन, मातृका पूजन, सप्तधृत मातृका पूजन, आयुष्यमंत्र जप, नांदीश्राद्ध, आचार्यदिग्भ्रगवरण, मधुपर्क पूजन, मंडप प्रवेश आदि विधियां की गईं।
बताया जा रहा है कि गणेश-अम्बिका पूजन के बाद वरुण पूजन और वस्त्र-पात्र आदि के साथ आचार्यों के कार्यों का विभाजन किया गया। इन्हें परायण, हवन आदि की जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। मंडप में बने नौ कुंडों पर मुख्य आचार्य की देखरेख में आठ आचार्य और आठ ब्रह्मा तथा चार-चार हुता (हवन करने वाले आचार्य) होंगे।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बाल्मीकि, अध्यात्मिक, भुशुंडी, आनंद, रामचरित मानस समेत कुल छह रामायणों के वाचन के लिए छह आचार्यों का वरण भी होगा। इसके अलावा नवग्रहों की शांति के लिए जप करने वाले आचार्यों का भी वरण किया जायेगा, जिसके बाद यहां पूजा जलाधिवास से कार्यक्रम संपन्न होगा।
रामलला की प्रतीकात्मक मूर्ति को मंदिर परिसर का भ्रमण कराया गया था
उल्लेखनीय है कि गर्भगृह में स्थापित होने वाली रामलला की 200 किलो वजनी नई मूर्ति को एक दिन पहले ही जन्मभूमि मंदिर परिसर लाया गया था। इस दौरान मूर्ति को परिसर भ्रमण कराना था, लेकिन भारी होने के कारण इसकी जगह रामलला की 10 किलो की चांदी की प्रतीकात्मक मूर्ति परिसर में घुमाई गई।
इससे पहले पहले यज्ञ मंडप के 16 स्तंभों और चारों द्वारों का पूजन भी हुआ। यह 16 स्तंभ 16 देवताओं के प्रतीक हैं। इनमें गणेश, विश्वकर्मा, ब्रह्मा, वरुण, अष्टवसु, सोम, वायु देवता को सफेद वस्त्रत्त् जबकि सूर्य, विष्णु को लाल वस्त्रत्त्, यमराज-नागराज, शिव, अनंत देवता को काले और कुबेर, इंद्र, बृहस्पति को पीले वस्त्रत्तों में निरुपित किया गया है। इस मंडप के चार द्वार, चार वेदों और उन द्वार के दो-दो द्वारपाल चारों वेदों की दो-दो शाखाओं के प्रतिनिधि माने गए हैं। पूर्व दिशा ऋग्वेद, दक्षिण यजुर्वेद, पश्चिम दिशा सामवेद और उत्तर दिशा अथर्व वेद की प्रतीक हैं।