नई दिल्ली, 18 दिसंबर। देश के पूर्व प्रधान न्यायाधीश और मौजूदा राज्यसभा सदस्य जस्टिस रंजन गोगोई के संसद में उपस्थिति को लेकर दिए गए बयान पर विवाद खड़ा होने के बाद सदन के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने कहा है कि संसद का प्रत्येक सदस्य सदन में उपस्थित होने के लिए कर्तव्यबद्ध है, जब तक कि ऐसा न करने के लिए बाध्यकारी कारण न हों।
वेंकैया नायडू ने सरदार वल्लभभाई पटेल सम्मेलन हॉल में केरलयम वीके माधवनकुट्टी पुरस्कारम के सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि आप संसद में उपस्थित होने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं, जब तक कि आपके पास कुछ अनिवार्य कारण न हों। सार्वजनिक जीवन में आपको अन्य कार्यक्रमों में भी शामिल होना पड़ सकता है और आपको अनुपस्थित रहना पड़ सकता है… लेकिन जो लोग संसद और समिति की बैठकों में नियमित रूप से शामिल नहीं होते हैं, वे अच्छे उदाहरण नहीं हैं।
जस्टिस गोगोई के खिलाफ लाया गया है विशेषाधिकार प्रस्ताव
गौरतलब है कि बीते दिनों समाचार चैनल एनडीटीवी को दिए एक साक्षात्कार में जस्टिस गोगोई की उक्त टिप्पणी के कारण सदन में उनके खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव दाखिल किया गया है। गत नौ दिसंबर को प्रसारित साक्षात्कार के दौरान, जस्टिस गोगोई ने कोविड प्रतिबंधों और सामाजिक दूरी और बैठने की व्यवस्था की कमी का हवाला देते हुए संसद में अपनी खराब उपस्थिति को उचित ठहराया था।
जस्टिस गोगोई ने कहा था, ‘जब मेरा मन करता है, मैं राज्यसभा के पास जाता हूं, जब मुझे लगता है कि महत्वपूर्ण मामले हैं, जिन पर मुझे बोलना चाहिए। मैं एक मनोनीत सदस्य हूं, किसी पार्टी ह्विप द्वारा शासित नहीं हूं।’
जो सदस्य खुद संसद सत्र में शामिल नहीं होते, उन्हें दूसरों की आलोचना का अधिकार नहीं
वेंकैया नायडू ने कहा कि गोगोई के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव उसके गुण के आधार पर तय किया जाएगा। हालांकि, बिना किसी का नाम लिए, उन्होंने कहा कि जो सदस्य संसद सत्र या समिति की बैठकों में शामिल नहीं होते हैं, उन्हें दूसरों की आलोचना करने का अधिकार नहीं है। (संसदीय) समिति प्रणाली बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन दुर्भाग्य से कुछ सदस्य समिति की बैठकों में भी शामिल नहीं होते।
मीडिया रिपोर्टिंग पर भी जताई निराशा
उन्होंने कहा, ‘मैं मीडिया रिपोर्टिंग से निराश हैं। केवल सनसनीखेज… किसी को न केवल संसद के कामकाज में आने वाली बाधाओं के बारे में, बल्कि वहां होने वाले काम के बारे में भी रिपोर्ट करना चाहिए… मेरा मतलब यह नहीं है कि मीडिया को सरकार का समर्थन करना चाहिए। लेकिन इसे उन लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जो सरकार की नीतियों और बिलों की रचनात्मक आलोचना करते हैं।’